मुझे सुहाये न ये साजन तेरी ये ठिठोली,
डाल दिया तूने रंग कैसा मैं तो तेरी हो ली।।।।
कांप गई ये देह ,,की जैसे चम्पा की कोई डार हो,,
बिन अबीर हो गई मैं साजन देखो लालम लाल हो,,,,
गाल हुए हैं इंद्रधनुष से बिन कुमकुम बिन रोली...
मुझे सुहाये ना ये साजन ,,,,,,
अधरो पर मुस्काता फागुन सागर में यूं ज्वार सा,,
कौन बने नैया ओ जोगी कौन बने पतवार सा मार रही है
ताने मुझको सखियों की ये टोली मुझे सुहाते ना ये साजन तेरी ये ठिठोली,,,,,
✍✍✍ कवियत्री दिव्या नेहा दुबे
डाल दिया तूने रंग कैसा मैं तो तेरी हो ली।।।।
कांप गई ये देह ,,की जैसे चम्पा की कोई डार हो,,
बिन अबीर हो गई मैं साजन देखो लालम लाल हो,,,,
गाल हुए हैं इंद्रधनुष से बिन कुमकुम बिन रोली...
मुझे सुहाये ना ये साजन ,,,,,,
अधरो पर मुस्काता फागुन सागर में यूं ज्वार सा,,
कौन बने नैया ओ जोगी कौन बने पतवार सा मार रही है
ताने मुझको सखियों की ये टोली मुझे सुहाते ना ये साजन तेरी ये ठिठोली,,,,,
✍✍✍ कवियत्री दिव्या नेहा दुबे
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