आज की दिल्ली / इंडियन न्यूज़ ऑनलाइन
अमेरिकी में कच्चे तेल (Crude Oil) का भाव सोमवार को जीरो डॉलर प्रति बैरल से नीचे चल गया था. आपको बता दे कि ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ है. दाम गिरने की वजह कोरोना वायरस (Coronavirus) संक्रमण. कोरोना के कारण दुनिया भर के कई देशों में कामकाज ठप है. डिमांड कम होने के बावजूद क्रूड की ओवर सप्लाई हो रही है जिसकी वजह से सोमवार को कच्चे तेल का भाव लुढ़क रहा है. भारत भी इस फायदा उठाने के लिए कई नए तेल भंडार बनाने की प्लानिंग कर रहा है. जिससे वे कम कीमत पर तेल खरीदकर अपना भंडार भर सके.
भारत तेल का सबसे बड़े आयातकों में से एक है. आपको बता दें कि भारत अपनी आपूर्ति का 80% तेल बाहर से मंगाता है. अभी ओडिशा और कर्नाटक में जमीन के भीतर पथरीली गुफाओं में कच्चा तेल जमा किया जाएगा. नरेंद्र मोदी सरकार की कोशिश है कि आपात स्थिति में कच्चे तेल का भंडार खत्म न हो पाए. नए अंडरग्राउंड स्टोरेज फैसिलटी बनने के बाद 22 दिनों तक का रिजर्व भारत के पास होगा. यहां 65 लाख टन कच्चा तेल जमा रहेगा.
देश में पहले से ऐसे तीन अंडरग्राउंड स्टोरेज फैसिलिटी मौजूद है. यहां 53 लाख टन कच्चा तेल हमेशा जमा रहता है. ये विखाखापत्तनम, मंगलौर और पडुर में है. ऑयल मार्केटिंग और प्रोडक्शन कंपनियां भी कच्चा तेल मंगाती हैं. हालांकि ये स्ट्रैटेजिक रिजर्व इन कंपनियों के पास तेल के भंडार से अलग है. भारतीय रिफाइनरियों के पास आमतौर पर 60 दिनों का तेल का स्टॉक रहता है. ये स्टॉक जमीन के अंदर मौजूद होते हैं. इन्हें आम भाषा में तेल की गुफाएं कहा जाता है. इस भंडार को आधिकारिक भाषा में स्ट्रैटिजिक पेट्रोलियम रिजर्व कहा जाता है.
अटल बिहारी वाजपेयी का था आइडिया
1990 के दशक में खाड़ी युद्ध के दौरान भारत लगभग दिवालिया हो गया था. उस समय तेल के दाम आसमान छू रहे थे. इससे पेमेंट संकट पैदा हो गया. भारत के पास सिर्फ तीन हफ्ते का स्टॉक बचा था. हालांकि मनमोहन सिंह सरकार ने स्थिति बखूबी संभाली. उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीति से अर्थव्यवस्था पटरी पर आई. इसके बाद भी तेल के दाम में उतार-चढ़ाव भारत को प्रभावित करता रहा. इस समस्या से निपटने के लिए 1998 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अंडरग्राउंड स्टोरेज बनाने का फैसला किया.
अमेरिकी में कच्चे तेल (Crude Oil) का भाव सोमवार को जीरो डॉलर प्रति बैरल से नीचे चल गया था. आपको बता दे कि ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ है. दाम गिरने की वजह कोरोना वायरस (Coronavirus) संक्रमण. कोरोना के कारण दुनिया भर के कई देशों में कामकाज ठप है. डिमांड कम होने के बावजूद क्रूड की ओवर सप्लाई हो रही है जिसकी वजह से सोमवार को कच्चे तेल का भाव लुढ़क रहा है. भारत भी इस फायदा उठाने के लिए कई नए तेल भंडार बनाने की प्लानिंग कर रहा है. जिससे वे कम कीमत पर तेल खरीदकर अपना भंडार भर सके.
भारत तेल का सबसे बड़े आयातकों में से एक है. आपको बता दें कि भारत अपनी आपूर्ति का 80% तेल बाहर से मंगाता है. अभी ओडिशा और कर्नाटक में जमीन के भीतर पथरीली गुफाओं में कच्चा तेल जमा किया जाएगा. नरेंद्र मोदी सरकार की कोशिश है कि आपात स्थिति में कच्चे तेल का भंडार खत्म न हो पाए. नए अंडरग्राउंड स्टोरेज फैसिलटी बनने के बाद 22 दिनों तक का रिजर्व भारत के पास होगा. यहां 65 लाख टन कच्चा तेल जमा रहेगा.
देश में पहले से ऐसे तीन अंडरग्राउंड स्टोरेज फैसिलिटी मौजूद है. यहां 53 लाख टन कच्चा तेल हमेशा जमा रहता है. ये विखाखापत्तनम, मंगलौर और पडुर में है. ऑयल मार्केटिंग और प्रोडक्शन कंपनियां भी कच्चा तेल मंगाती हैं. हालांकि ये स्ट्रैटेजिक रिजर्व इन कंपनियों के पास तेल के भंडार से अलग है. भारतीय रिफाइनरियों के पास आमतौर पर 60 दिनों का तेल का स्टॉक रहता है. ये स्टॉक जमीन के अंदर मौजूद होते हैं. इन्हें आम भाषा में तेल की गुफाएं कहा जाता है. इस भंडार को आधिकारिक भाषा में स्ट्रैटिजिक पेट्रोलियम रिजर्व कहा जाता है.
अटल बिहारी वाजपेयी का था आइडिया
1990 के दशक में खाड़ी युद्ध के दौरान भारत लगभग दिवालिया हो गया था. उस समय तेल के दाम आसमान छू रहे थे. इससे पेमेंट संकट पैदा हो गया. भारत के पास सिर्फ तीन हफ्ते का स्टॉक बचा था. हालांकि मनमोहन सिंह सरकार ने स्थिति बखूबी संभाली. उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीति से अर्थव्यवस्था पटरी पर आई. इसके बाद भी तेल के दाम में उतार-चढ़ाव भारत को प्रभावित करता रहा. इस समस्या से निपटने के लिए 1998 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अंडरग्राउंड स्टोरेज बनाने का फैसला किया.
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.