Friday, April 24, 2020

पालघर हत्‍याकांड पर हुआ खुलासा, साधुओं की हत्‍या पर आई सबसे बड़ी 'गवाही'

आज की दिल्ली / इंडियन न्यूज़ ऑनलाइन 

पालघर में पिछले दिनों तीन साधुओं समेत तीन लोगों की हत्‍या के मामले में बड़ा खुलासा किया है. महाराष्‍ट्र में पालघर के जिस गांव गढ़चिंचले गांव में इन साधुओं की मॉब लिंचिंग की गई, वहां की सरपंच ने आंखों देखी घटना बताई. यहां की सरपंच चित्रा चौधरी ने उस रात की पूरी घटना के बारे में  बताया.  चित्रा चौधरी ने  बताया कि उन्हें 16 अप्रैल की शाम तकरीबन 8:30 बजे पता चला कि चेकपोस्ट पर गाड़ी रोकी गई है. अगले 15 मिनट में (तकरीबन 8:45 पर) वो अपने घर से गाड़ी तक पहुंची. गाड़ी का शीशा बंद था, साधु बाबा ने उन्हें हाथ जोड़कर नमन किया. इन्होंने उनसे पूछा कौन है, कहां जाना है तब तक भीड़ ने गाड़ी के टायर की हवा निकाल दी और गाड़ी पलट दी. पुलिस के आने तक अगले दो तीन घंटे (तकरीबन 11:00-11:15pm) तक उन्होंने भीड़ को काफी समझाने की कोशिश की. कुछ हद तक वो भीड़ को काफी समय तक काबू में रख पाई थीं. लेकिन भीड़ ने उन पर भी नाराज़गी जताई. पुलिस दो लोगों को अपनी गाड़ी में बिठा चुकी थी और बूढ़े बाबा पुलिस का हाथ थामकर जब फॉरेस्ट की चौकी से बाहर निकले तब हुए हमले में मुझे भी चोट आई और अपनी जान बचाकर किसी तरह भागकर घर पहुंची. जब सुपरिटेंडेंट साहब पहुंचे तब (तकरीबन रात 12 बजे) मैं दोबारा नीचे गई तब मैंने तीनों की लाशें वहां देखीं.
(इस बारे में पुलिस ने बताया था कि उन्हें घटना की जानकारी 9:30 से 9:45 के बीच मिली और वे तकरीबन 11 बजे घटनास्थल पहुंचे थे.)
इसके बाद सरपंच ने कहा कि भीड़ जमा हो गई... काशीनाथ आया... काशीनाथ आया (एनसीपी का नेता)..‌ऐसे चिल्लाने लगे और सीटी बजाने लगे. और भीड़ जमा हो गई और मुझे भी ढूंढ रहे थे कि सरपंच ताई कहां गई, सरपंच ताई कहां गई. जब भीड़ गाड़ी के शीशे पर पत्थर मार रही थी तब मैं भी अपनी जान बचाने के लिए किसी तरह वहां से निकल कर घर आ गई. इसके बाद वहां कैसी तोड़फोड़ हुई और मर्डर हुआ वो मैंने नहीं देखा. उस वक़्त वहां काशीनाथ चौधरी था और पुलिस वाले थे. पुलिस की हिरासत में देने और पुलिस की गाड़ी में पीड़ितों के बैठ जाने के बाद मेरी ज़िम्मेदारी तो खत्म हो गई थी ना. पुलिस वालों को उनका कर्तव्य निभाना चाहिए था. जब तक मेरी कैपेसिटी थी मैंने भीड़ को 3 घंटे कंट्रोल किया था. अकेली औरत ने इतनी भीड़ को कंट्रोल में रखा था और उन लोगों को कुछ नहीं होने दिया.
 सरपंच ने  कहा, इतना तो मैंने नहीं देखा. काशीनाथ चौधरी जब आया तब काफी लोगों ने सीटियां बजाईं, और चिल्लाने लगे - चौधरी आया, चौधरी आया, अपना दादा (भाई) आया, अपना दादा आया और ऐसे भीड़ जमा हुई. जब उस साधु को खींच कर (गाड़ी से बाहर) निकाल रहे थे तब कुछ लोग मेरे नाम से भी चिल्ला रहे थे कि वो सरपंच ताई कहां गई, उन्हें भी लेकर आओ. जब तक उनको पीछे से मारा होगा तब तक मैं अपनी जान बचाकर भागी.

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.