Thursday, May 28, 2020

24 घंटे में अचानक चीन क्‍यों पड़ा नरम, जानें 'इनसाइड स्टोरी'

आज  की दिल्ली / इंडियन न्यूज़ ऑनलाइन :


लद्दाख सीमा पर चीन की हरकतों के बारे में मंगलवार को हमने आपको विस्तार से समझाया था. हमने ये बताया था कि चीन के इरादे क्या हैं और वो क्यों अचानक सीमा पर भारत से भिड़ रहा है? लेकिन जिसके पास संयम है और जिसके पास शक्ति है, उसका कोई भी कुछ बिगाड़ नहीं सकता. भारत ने अपने संयम और शक्ति से चीन को ऐसा जवाब दिया है कि 24 घंटे के अंदर उसके तेवर बदल गए हैं. इसे चीन के तीन बयानों से समझ सकते हैं. 
मंगलवार को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपनी सेना को युद्ध की तैयारी तेज करने के लिए कहा था. वैसे तो चीन के राष्ट्रपति ने ये बयान खासतौर पर ताइवान और अमेरिका के लिए दिया था, लेकिन इस बयान को भारत के संदर्भ में भी देखा जा रहा था, क्योंकि चीन की सेना लद्दाख सीमा पर भारत को आक्रामक तेवर दिखा रही है. 
इसके बाद दूसरा बयान चीन के विदेश मंत्रालय का आया. उसने कहा कि भारत के साथ सीमा पर हालात स्थिर हैं और काबू में हैं, दोनों देशों के पास बातचीत करके मुद्दों को हल करने के माध्यम मौजूद हैं. 
तीसरा बयान भारत में चीन के राजदूत का आया. उन्होंने कहा कि दोनों देश कोरोना वायरस से लड़ रहे हैं और इस वक्त रिश्तों को मजबूत करने की जरूरत है. चीन के राजदूत ने कहा कि दोनों देश एक दूसरे के लिए खतरा नहीं बल्कि अवसर हैं. रिश्तों पर मतभेद हावी नहीं होने चाहिए और बातचीत से ही मतभेदों का समाधान निकालना चाहिए. 
अब इन बयानों से यही समझा जाना चाहिए कि चीन अब बातचीत की टेबल पर आना चाहता है. पहले वो लद्दाख में अपने सैनिकों की संख्या बढ़ाकर भारत को धमकाना चाहता था, और भारत को सड़क बनाने से रोकना चाहता था, लेकिन भारत के सख्त रवैये से चीन को लग गया है कि उसके हथकंडे भारत के सामने नहीं चल पाएंगे. 
क्योंकि भारत ने साफ कह दिया था कि सीमा पर अपने इलाके में सड़क बनाना भारत बंद नहीं करेगा. इंफ्रास्ट्रक्चर पर उतनी ही रफ्तार से काम होगा, जितनी रफ्तार से पिछले कुछ वर्षों से काम हो रहा है.
सीमा पर चीन ने अपने सैनिकों की संख्या बढ़ाई तो भारत ने भी उसी के बराबर अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी है. यानी भारत ने चीन के आक्रामक रवैये के सामने किसी भी दबाव में आने से इनकार कर दिया.
भारत चीन को ठीक उसी तरीके से जवाब दे रहा है, जैसा जवाब दो वर्ष पहले उसने डोकलाम में दिया था. चीन की हरकतों को भारत हल्के में नहीं ले रहा है, ना ही किसी उकसावे में आकर काम कर रहा है. 
मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लद्दाख के हालात पर मीटिंग की थी. इसमें सेना की तरफ से प्रधानमंत्री को मौजूदा हालत और तैयारियों पर रिपोर्ट दी गई और तनाव बढ़ने की स्थिति में विकल्पों के बारे में सुझाव दिए गए. यानी अगर तनाव बढ़ता है तो फिर क्या क्या किया जा सकता है? आज सेना के बड़े अधिकारियों की तीन दिन की Commanders’ Conference भी शुरू हुई है, जिसमें सेना प्रमुख की सेना के कमांडरों के साथ मौजूदा हालात पर चर्चा हो रही है. 
ये तो सेना की तैयारियों से जुड़ा मामला है, लेकिन लद्दाख के मामले को लेकर प्रधानमंत्री की फिर वही रणनीतिक टीम एक्शन में आई है, जिसने डोकलाम विवाद को हल करने में मुख्य भूमिका निभाई थी. इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत और विदेश मंत्री एस जयशंकर का नाम है. इसी टीम ने 2017 में डोकलाम विवाद पर भारत की रणनीति बनाई थी, जो विवाद 73 दिन तक चला था. जनरल बिपिन रावत तब सेना प्रमुख थे और एस जयशंकर तब भारत के विदेश सचिव थे. 
चीन के साथ सीमा विवाद तो पहले भी होते रहे हैं, सैनिकों के बीच धक्कामुक्की और झड़प भी होती रही है, लेकिन बातचीत से मामला खत्म हो जाता था. इस बार ऐसा हुआ है कि लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के पास कई जगहों पर चीन के हजारों सैनिक बंकर बनाकर और टेंट लगाकर बैठ गए. लेकिन चीन के इस उकसावे पर भारत ने बौखलाकर नहीं, शांत होकर संयम और शक्ति से जवाब दिया. जानकारी के मुताबिक भारत ने भी अपने 10 से 12 हजार सैनिकों को आगे बढ़ने और तैयार रहने को कहा है. 
भारतीय सेना ने साफ संदेश दिया है कि वो चीन को सीमा पर स्थिति बदलने नहीं देगी. जिन पांच जगहों पर चीन ने घुसपैठ की, वहां उनकी हर हरकत पर पूरी नजर रखी जा रही है. 
भारत ने साफ कह दिया है कि उसके सैनिक अपने फॉरवर्ड पोजीशन से पीछे नहीं हटेंगे. भारत ने ये भी तय किया है कि अगर जरूरत पड़ी तो वो सीमा पर और संसाधन लगाएगा. सीमा के हालात पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और एनएसए अजीत डोवल की लगातार नजर है. 
लद्दाख सीमा पर भारत से उलझा चीन, ये सोच रहा था कि वो भारत को झुका लेगा, डरा-धमका लेगा और अपनी बात मनवाने पर मजबूर कर देगा, लेकिन भारत ने भी चीन को सीधे संदेश दे दिए हैं, कि ये 1962 का भारत नहीं, नया भारत है. हर हाल में भारत अपने हितों की रक्षा करेगा और चीन उसी तरह से जवाब देगा, जैसा जवाब डोकलाम में दिया था. 
गलवान घाटी में तो चीन ने अपने सैनिकों को उस जगह तक तैनात कर दिया, जो जगह भारत के नियंत्रण वाली मौजूदा सीमा के तीन किलोमीटर अंदर है. इसी तरह पेंगांग लेक के पास भी उसने सैन्य ताकत बढ़ा दी है, जो रणनीतिक रूप से बहुत अहम है. अभी इस लेक के एक तिहाई हिस्से पर ही भारत का कब्जा है. 
चीन ऐसा इसलिए कर रहा है कि क्योंकि उसे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर भारत के तेजी से बनते इंफ्रास्ट्रक्चर से बहुत परेशानी हो रही है. उसे लग रहा है कि उसकी रणनीतिक स्थिति कमजोर हो रही है. लद्दाख में पिछले वर्ष भारत ने 255 किलोमीटर लंबी सड़क जो बनाई है, उसे चीन बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है. इस सड़क के जरिए मौजूदा टकराव वाली गलवान घाटी तक पहुंचने का रास्ता भी है. 
भारत सीमा पर सख्ती दिखाना जानता है तो बातचीत की टेबल पर संयम बरतना भी भारत को आता है. इसीलिए पिछले 24 घंटों में चीन इस मुद्दे पर नर्म पड़ गया है. आप चीन की सोच में आए इस बदलाव को चीन की पांच परेशानियों से समझिए जिन परेशानियों का चीन इस समय सामना कर रहा है. 
पहली परेशानी है कोरोना वायरस की महामारी जिससे चीन अब भी संघर्ष कर रहा है. दूसरी परेशानी है कोरोना वायरस को लेकर चीन के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय जांच का दबाव. चीन की तीसरी परेशानी है अमेरिका के साथ उसका विवाद. अमेरिका ने अब साफ कर दिया है कि जब तक चीन कोरोना वायरस को लेकर जिम्मेदारी भरा व्यवहार नहीं करता, तब तक चीन के साथ रिश्ते सुधरने की कोई गुंजाइश नहीं है.
चीन की चौथी परेशानी है HONG KONG. जहां फिर से विरोध प्रदर्शन शुरु हो गए हैं. ये विरोध प्रदर्शन चीन द्वारा प्रस्तावित उस कानून के विरोध में हो रहे हैं जिसके जरिए चीन HONG KONG की आजादी कुचलना चाहता है. 
चीन की पांचवी परेशानी है पूरी दुनिया में ताईवान के लिए बढ़ता समर्थन. चीन ताईवान को अपना हिस्सा मानता है और वो उसके खिलाफ सैन्य कार्रवाई की धमकी भी दे चुका है, लेकिन अब पूरी दुनिया धीरे धीरे ताइवान का समर्थन कर रही है और चीन के लिए ये बहुत बड़ी कूटनीतिक विफलता है. 
आज हमने चीन के व्यवहार में आए इस बदलाव पर कुछ विशेषज्ञों से बात की. उनसे बातचीत के आधार पर तीन निष्कर्ष निकलकर आए. पहला- चीन के रवैये में बदलाव आया है और Back Channel Diplomacy काम कर रही है. 
दूसरा- चीन गंभीर सवालों से खूबसूरत शब्दों की आड़ में बचना चाहता है. उदाहरण के लिए चीन अब भारत के साथ शांति और सौहार्द की बात कर रहा है लेकिन ये नहीं बता रहा कि उसने लद्दाख में ये कदम किस नियत से उठाया. 
और तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि लद्दाख में विवाद तभी थमेगा जब चीन अपनी सेनाओं को वापस बुला लेगा. क्योंकि ये पूरी दुनिया जानती हैं कि इसमें गलती भारत की नहीं सिर्फ चीन की है, और उसी ने बिना उकसाए ये आक्रमक रवैया अपनाया है. 
भारत को दबाव में लाने के लिए चीन ने लद्दाख में नई चाल चली, लेकिन चीन अपने ही इस खेल में फंस गया है. इसी बीच अमेरिका से एक बड़ा बयान आया है, जिसने सबको हैरान कर दिया. ये बयान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प का है.
डोनल्ड ट्रम्प ने आज Tweet करके भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की पेशकश कर दी.  ऐसा पहली बार हुआ है, अमेरिका ने भारत और चीन के आपस के मामले में इस तरह से बीच-बचाव करने का प्रस्ताव दिया है. 
वैसे तो डोनल्ड ट्रम्प इससे पहले भारत और पाकिस्तान के मामले में इसी तरह की बात कर चुके हैं, लेकिन भारत और चीन के मामले की बात अलग है. और जब इन दो बड़े देशों के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति बातचीत या मध्यस्थता का प्रस्ताव दें तो फिर सवाल यही उठता है कि इस पर चीन की क्या प्रतिक्रिया होगी, क्योंकि चीन कोरोना वायरस की वजह से इस वक्त अमेरिका का दुश्मन नंबर वन बन चुका है. वैसे भारत और चीन के सीमा विवाद पर अमेरिका की पहले से ही नजर रही है. कुछ दिन पहले अमेरिका की एक टॉप डिप्लोमेट ने कहा था कि भारत की सीमा पर चीन जिस तरह की हरकतें कर रहा है, वो उसके आक्रामक रवैये को दिखाता है. 
ये सिर्फ इत्तेफाक नहीं था कि चीन के तेवर नरम पड़े तो नेपाल भी भारत के साथ टकराव से पीछे हटता दिख रहा है. नेपाल ने अपने जिस नए नक्शे पर भारत से लड़ने के लिए तैयार था, उस नक्शे पर नेपाल की संसद में चर्चा नहीं हो सकी. मंगलवार को नेपाल की संसद में इसको लेकर एक संवैधानिक सुधार पर प्रस्ताव पेश होना था, लेकिन वो प्रस्ताव पेश नहीं हुआ. इसी वजह तो नेपाल की घरेलू राजनीति बताई जा रही है, लेकिन माना यही जा रहा है कि भारत के कड़े रुख के बाद नेपाल बैकफुट पर आ गया. दरअसल नेपाल ने अपना नया नक्शा जारी करके भारत के कई हिस्से नेपाल में दिखाए थे. जिन स्थानों को नेपाल ने अपने देश के नक्शे में दिखाए थे, उन सभी जगहों पर भारत का ही हमेशा से कब्जा रहा है और इस पर नेपाल को कभी आपत्ति नहीं हुई, लेकिन ऐसा माना जाता है कि चीन के इशारे पर नेपाल ने भारत के साथ नए विवाद को जन्म दिया. लेकिन भारत ने नेपाल को साफ कह दिया था कि वो इस तरह के विस्तारवादी दावों को कभी स्वीकार नहीं करेगा. 
चीन के साथ मौजूदा सीमा विवाद, भारत को आजादी के बाद विरासत में मिला. भारत और चीन के बीच में कई इलाकों में Line Of Actual Control यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा स्पष्ट नहीं है और बार-बार यही तनाव की वजह भी बनती है. भारत और चीन के बीच 3500 किलोमीटर से ज़्यादा लंबी Line Of Actual Control है. चीन जान-बूझ कर सीमा विवाद का हल नहीं करना चाहता और समय-समय पर इसका इस्तेमाल भारत पर दबाव बनाने के लिए करता रहता है. 
लद्दाख में नए विवाद और चीन की हरकतों के बाद अक्साई चिन पर भी लोग बात करने लगे हैं. ये वो इलाका है, जो भारत का ही हिस्सा है, लेकिन इस पर चीन का अवैध कब्जा है. हम इसके इतिहास के बारे में आपको बताते हैं. 1865 में ब्रिटिश शासनकाल में Civil Servant रहे, ब्रिटेन के W. H. Johnson ने एक वैचारिक रेखा खींची थी, जिसके मुताबिक अक्साई चिन का इलाका जम्मू-कश्मीर में आता है. इसको 'जॉनसन लाइन' कहा जाता है. भारत का इसी ऐतिहासिक आधार पर अक्साई चिन पर दावा है. 
लेकिन चीन ने इस लाइन को कभी नहीं माना और 1951 से अक्साई चिन पर कब्जा करने वाली चालें चलने लगा. चीन ने पहले 1951 में एक सड़क के जरिए तिब्बत को चीन के शिनजियांत प्रांत से जोड़ा फिर इसी से जुड़े इलाकों में सड़कें बनकर अक्साई चिन पर कब्जा करने के इरादे दिखाने लगा. भारत ने तब तक इस पर ध्यान नहीं दिया. इसके बाद 1962 का युद्ध हुआ तो भारत का अक्साई चिन चीन के पास चला गया. 
1962 के युद्ध के वक्त भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे. कांग्रेस पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं कि कि पहले 1948 में जम्मू कश्मीर का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के हाथों गंवा दिया. फिर 1962 के युद्ध में अक्साई चिन को चीन के हाथों गंवा दिया. ये करीब 38 हजार वर्ग किलोमीटर का इलाका है, जो चीन के अवैध कब्जे में है. 

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