Wednesday, June 10, 2020

जो बाइडन क्या डोनाल्ड ट्रंप को हरा कर अमरीका के अगले राष्ट्रपति बन पाएंगे?

आज की दिल्ली :



जो बाइडन को दुनिया के सबसे तजुर्बेकार राजनेताओं में से एक माना जाता है. लेकिन, वो अपने भाषणों में भयंकर ग़लतियां करने के लिए भी कुख्यात हैं.
हालांकि, डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार चुने गए बाइडन के बारे में आपके लिए बस इतना जानना पर्याप्त है कि वो इस साल नवंबर में होने वाले चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप को चुनौती देंगे.
जो बाइडन वो इंसान हैं, जो अमरीका की सत्ता के केंद्र व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप के अगले चार बरस बिताने के ख़्वाब की राह में खड़ी इकलौती बाधा हैं.
बराक ओबामा के शासन काल में उप-राष्ट्रपति रहे बाइडन को औपचारिक रूप से डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव का प्रत्याशी चुन लिया गया है.
अपने समर्थकों के बीच में जो बाइडन, विदेश नीति के विशेषज्ञ के तौर पर मशहर हैं. उनके पास वॉशिंगटन डी. सी. में राजनीति करने का कई दशकों का तजुर्बा है. वो मीठी ज़ुबान बोलने वाले नेता के तौर पर मशहूर हैं, जो बड़ी आसानी से लोगों का दिल जीत लेते हैं. बाइडन की सबसे बड़ी ख़ासियत ये है कि वो बड़ी सहजता से आम आदमी से नाता जोड़ लेते हैं. अपनी निजी ज़िंदगी में बाइडन ने बहुत से उतार चढ़ाव देखे हैं और बहुत सी त्रासदियां झेली हैं.
वहीं, विरोधियों की नज़र में जो बाइडन ऐसी शख़्सियत हैं, वो अमरीकी सत्ता में गहरे रचे बसे इंसान हैं, जिनमें कमियां ही कमियां हैं. बाइडन के बारे में उनके विरोधी कहते हैं कि वो अपने भाषणों में झूठे दावे करते हैं. साथ ही उनकी एक और आदत को लेकर भी अक्सर चिंता जताई जाती है कि उन्हें महिलाओं के बाल सूंघने की बुरी लत है.
बड़ा सवाल ये है कि क्या बाइडन में वो ख़ासियत है कि वो नवंबर के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को व्हाइट हाउस से बाहर का रास्ता दिखा सकें?

तेज़ वक्ता

जो बाइडन का चुनाव प्रचार से बड़ा पुराना नाता रहा है. अमरीका की संघीय राजनीति में उनके करियर की शुरुआत, आज से 47 बरस पहले यानी 1973 में सीनेट के चुनाव से हुई थी. और उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में भागीदारी के लिए पहला दांव आज से 33 साल पहले चला था.
ऐसे में अगर ये कहें कि बाइडन के पास वोटर को लुभाने का क़ुदरती हुनर है, तो ग़लत नहीं होगा. मगर, बाइडन के साथ सबसे बड़ा जोखिम ये है कि वो कभी भी कुछ भी ग़लत बयानी कर सकते हैं, जिससे उनके सारे किए कराए पर पानी फिर जाए.
जनता से रूबरू होने पर जो बाइडन अक्सर जज़्बात में बह जाते हैं. और इसी कारण से राष्ट्रपति चुनाव का उनका पहला अभियान शुरू होने से पहले ही अचानक ही ख़त्म हो गया था (बाइडन तीसरी बार राष्ट्रपति बनने का प्रयास कर रहे हैं).
जब 1987 में बाइडन ने राष्ट्रपति चुनाव में प्रत्याशी बनने के लिए पहली बार कोशिश करनी शुरू की थी, तो उन्होंने रैलियों में ये दावा करना शुरू कर दिया था कि, 'मेरे पुरखे उत्तरी पश्चिमी पेन्सिल्वेनिया में स्थित कोयले की खानों में काम करते थे.' और बाइडन ने भाषण में ये कहना शुरू कर दिया कि उनके पुरखों को ज़िंदगी में आगे बढ़ने के वो मौक़े नहीं मिले जिसके वो हक़दार थे. और बाइडन ये कहा करते थे कि वो इस बात से बेहद ख़फ़ा हैं.
मगर, हक़ीक़त ये है कि बाइडन के पूर्वजों में से किसी ने भी कभी कोयले की खदान में काम नहीं किया था. सच तो ये था कि बाइडन ने ये जुमला, ब्रिटिश राजनेता नील किनॉक की नक़ल करते हुए अदा किया था (इसी तरह बाइडन ने कई अन्य नेताओं के बयान अपने बना कर पेश किए थे). जबकि नील किनॉक के पुरखे तो वाक़ई कोयला खदान में काम करने वाले मज़दूर थे
और ये तो बाइडन के तमाम झूठे जुमलों में से महज़ एक था. उनके ऐसे बयान अमरीकी राजनीति में 'जो बॉम्ब' के नाम से मशहूर या यूं कहें कि बदनाम हैं.
2012 में अपने राजनीतिक तजुर्बे का बखान करते हुए बाइडन ने जनता को ये कह कर ग़फ़लत में डाल दिया था कि, 'दोस्तो, मैं आपको बता सकता हूं कि मैंने आठ राष्ट्रपतियों के साथ काम किया है. इनमें से तीन के साथ तो मेरा बड़ा नज़दीकी ताल्लुक़ रहा है.' उनके इस जुमले का असल अर्थ तो ये था कि वो तीन राष्ट्रपतियों के साथ क़रीब से काम कर चुके हैं. मगर इसी बात को उन्होंने जिन लफ़्ज़ों में बयां किया, उसका मतलब ये निकलता था कि उनके तीन राष्ट्रपतियों के साथ यौन संबंध रहे थे.
जब बराक ओबामा ने जो बाइडन को अपने साथ उप-राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया, तो बाइडन ने ये कह कर लोगों को डरा दिया था कि इस बात की तीस फ़ीसद संभावना है कि ओबामा और वो मिलकर अर्थव्यवस्था सुधारने में ग़लतियां कर सकते हैं.
जो बाइडन को क़िस्मत का धनी ही कहा जा सकता है कि उन्हें अमरीका के पहले काले राष्ट्रपति ने अपना उप-राष्ट्रपति बनाया था. क्योंकि, इससे पहले बाइडन ने ओबामा के बारे में ये कह कर हलचल मचा दी थी कि, 'ओबामा ऐसे पहले अफ्रीकी मूल के अमरीकी नागरिक हैं, जो अच्छा बोलते हैं. समझदार हैं. भ्रष्ट नहीं है और दिखने में भी अच्छे हैं.
अपने इस बयान के बावजूद, इस बार के राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान, जोसेफ बाइडन अमरीका के अफ्रीकी-अमरीकी समुदाय के बीच बहुत लोकप्रिय हैं. लेकिन, हाल ही में एक काले होस्ट के साथ चैट शो के दौरान जो बाइडन ने ऐसा कुछ कह दिया था जिससे बहुत बड़ा हंगामा खड़ा हो गया था. काले अमरीकी होस्ट शार्मलेन था गॉड के साथ बातचीत में बाइडन ने दावा किया था कि, 'अगर आपको ट्रंप और मेरे बीच चुनाव करने में समस्या है, तो फिर आप काले हैं ही नहीं.'
बाइडन के इस इकलौते मुंहफट बयान से अमरीकी मीडिया में तूफ़ान सा आ गया था. जिसके बाद बाइडन के प्रचार अभियान की कमान संभाल रही टीम को लोगों तक ये संदेश पहुंचाने में बड़ी मशक़्क़त करनी पड़ी थी कि बाइडन, अफ्रीकी-अमरीकी मतदाता को हल्के में बिल्कुल नहीं ले रहे हैं.
जो बाइडन के ऐसे बेलगाम बयानों के कारण ही न्यूयॉर्क मैग़ज़ीन के एक पत्रकार ने लिखा था कि, 'बाइडन की पूरी प्रचार टीम बस इसी बात पर ज़ोर दिए रहती है कि कहीं वो कोई अंट-शंट बयान न दे बैठें.'

प्रचार अभियान के पुराने तजुर्बेकार

यूं तो बाइडन एक अच्छे वक्ता हैं. मगर, उनकी भाषण कला का एक पहलू और भी है. आज जब दुनिया में रोबोट जैसे नेताओं की भरमार है, जो सधे हुए बयान देते हैं. बस लिखा हुआ पढ़ देते हैं. लेकिन, बाइडन ऐसे वक्ता हैं जिन्हें सुन कर ऐसा लगता है कि वो दिल से बोल रहे हैं.
बाइडन कहते हैं कि बचपन में हकलाने की आदत की वजह से उन्हें टेलिप्रॉम्पटर की मदद से पढ़ना नहीं आता है. वो जो भी बोलते हैं, दिल से बोलते हैं.
जो बाइडन के भाषण में वो दिलकशी है कि वो अमरीका के ब्लू-कॉलर कामकाजी लोगों की भीड़ में अचानक अपने भाषण से जोश भर देते हैं. इसके बाद वो बड़ी सहजता से उस भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं. लोगों से मिलते हैं. हाथ मिलाते हैं उन्हें गले लगाते हैं. लोगों के साथ सेल्फ़ी लेते है. ठीक उसी तरह जैसे कोई बुज़ुर्ग फ़िल्म स्टार हो, जो अचानक अपने फ़ैन्स के बीच पहुंच गया हो.
अमरीका के पूर्व विदेश मंत्री और राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार रहे जॉन केरी ने न्यूयॉर्कर मैगज़ीन से बातचीत में बाइडन के बारे में कहा था कि, 'वो लोगों को अपनी ओर खींच कर उन्हें गले लगा लेते हैं. कई बार तो लोग उनकी बातों से ही उनकी ओर खिंचे चले आते हैं और कई बार वो लोगों को ख़ुद ही अपने आगोश में भींच लेते हैं. वो दिल को छू लेने वाले राजनेता हैं. और उनमें कोई बनावट नहीं है. वो कोई ढोंग नहीं करते. बड़े सहज भाव से लोगों में घुल मिल जाते हैं.'

बाइडन पर लगे गंभीर आरोप

पिछले साल आठ महिलाओं ने सामने आकर ये आरोप लगाया था कि जो बाइडन ने उन्हें आपत्तिजनक तरीक़े से छुआ था, गले लगाया था या किस किया था. इन महिलाओं के आरोप लगाने के बाद कई अमरीकी न्यूज़ चैनलों ने बाइडन के सार्वजनिक समारोहों में महिलाओं से अभिवादन करने की नज़दीकी तस्वीरें दिखाई थीं. इनमें कई बार बाइडन को महिलाओं के बाल सूंघते हुए भी देखा गया था.
इन आरोपों के जवाब में बाइडन ने कहा था कि, 'भविष्य में मैं महिलाओं से अभिवादन के दौरान अतिरिक्त सावधानी बरतूंगा.'
लेकिन, अभी इसी साल मार्च महीने में अमरीकी अभिनेत्री तारा रीड ने इल्ज़ाम लगाया था कि जो बाइडन ने तीस साल पहले उनके साथ यौन हिंसा की थी. उन्हें दीवार की ओर धकेल कर उनसे ज़बरदस्ती करने की कोशिश की थी. उस वक़्त तारा रीड, बाइडन के ऑफ़िस में एक सहायक कर्मचारी के तौर पर काम कर रही थीं.
जो बाइडन ने तारा रीड के इस दावे का सख़्ती से खंडन किया था और एक बयान जारी करके कहा था कि, 'ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ था.'
अपनी पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का बचाव करते हुए, बाइडन के समर्थक ये कह सकते हैं कि दर्जन भर से ज़्यादा महिलाओं ने अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर सार्वजनिक रूप से यौन हिंसा करने के इल्ज़ाम लगाए हैं. पर, सवाल ये है कि क्या आप ऐसे बर्ताव का राजनीतिक विरोधी के ऐसे कृत्यों की तुलना करके जवाब दे सकते हैं?
जब से अमरीका में #MeToo आंदोलन शुरू हुआ है, तब से जो बाइडन समेत डेमोक्रेटिक पार्टी के कई नेता ज़ोर देकर ये कहते रहे हैं कि समाज को महिलाओं पर यक़ीन करना चाहिए. ऐसे में अगर बाइडन पर लग रहे ऐसे आरोपों को कम करके बताने की कोशिश होती है, तो ऐसे किसी भी प्रयास से महिला अधिकारों के लिए काम कर रहे लोगों को निराशा ही होगी.
हाल ही में एक इंटरव्यू में तारा रीड ने कहा था कि, 'बाइडन के सहयोगी मेरे बारे में भद्दी-भद्दी बातें कहते रहे हैं. और सोशल मीडिया पर भी मुझे लेकर अनाप शनाप बोल रहे हैं. ख़ुद बाइडन ने तो मुझे कुछ भी नहीं कहा. मगर, बाइडन के पूरे प्रचार अभियान में एक पाखंड साफ़ तौर पर दिखता है कि उनसे महिलाओं को बिल्कुल भी ख़तरा नहीं है. सच तो ये है कि बाइडन के क़रीब रहना कभी भी सुरक्षित नहीं था.'
जो बाइडन की प्रचार टीम ने तारा रीड के इन आरोपों का खंडन किया है.

पुरानी ग़लतियों से बचने की कोशिश

भले ही आम लोगों से बाइडन की ये नज़दीकी पहले उनके लिए मुसीबत बनती रही हो. लेकिन, इस बार उनके समर्थक ये उम्मीद कर रहे हैं कि उनका जो लोगों से नज़दीकी बनाने का ख़ास स्टाइल है, आम लोगों से जो गर्मजोशी है, उसकी मदद से वो अपनी पुरानी ग़लतियों के भंवर में दोबारा नहीं फंसेंगे. वो डेमोक्रेटिक पार्टी के पुराने राष्ट्रपति चुनाव के प्रत्याशियों जैसी ग़लती नहीं दोहराएंगे. इस बार सावधानी बरतेंगे.
जो बाइडन को अमरीका की संघीय राजनीति में काम करने का लंबा अनुभव रहा है. वो वॉशिंगटन में लंबे समय से सक्रिय रहे हैं. अमरीकी संसद के ऊपरी सदन यानी सीनेट में बाइडन ने तीन दशक से अधिक समय गुज़ारा है. इसके अलावा वो बराक ओबामा के राज में आठ साल तक उप-राष्ट्रपति रहे हैं. सियासत में इतना लंबा अनुभव काफ़ी काम आता है. मगर, हालिया इतिहास बताता है कि ऐसा हमेशा हो, ये भी ज़रूरी नहीं.
अल गोर (अमरीकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स में आठ साल का अनुभव, सीनेट में आठ साल का तजुर्बा और उप-राष्ट्रपति के तौर पर आठ साल का वक़्त) हों, जॉन केरी हों (सीनेट में 28 साल का अनुभव) या फिर हिलेरी क्लिंटन (देश की प्रथम महिला के तौर पर आठ वर्ष का तजुर्बा और सीनेट में आठ साल का अनुभव, विदेश मंत्री के तौर पर चार बरस का तजुर्बा), डेमोक्रेटिक पार्टी के ये सभी अनुभवी राजनेता, अपने से कम तजुर्बा रखने वाले रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी के हाथों शिकस्त खाने को मजबूर हुए.
जो बाइडन के समर्थक ये मानते हैं कि एक ज़मीनी नेता के तौर पर उनका अनुभव, उन्हें कम अनुभवी ट्रंप के हाथों परास्त होने से बचा लेगा.
अमरीका के वोटरों ने कई बार ये साबित किया है कि वो ऐसे नेताओं को राष्ट्रपति चुनने को तरजीह देते हैं, जो ये दावा करता है कि वो वॉशिंगटन की राजनीति का हिस्सा नहीं है. बल्कि, वो इसलिए राष्ट्रपति बनना चाहते हैं ताकि वो वॉशिंगटन की मौजूदा व्यवस्था को जड़ से उखाड़ फेंकें. उसमें आमूल चूल बदलाव ले आएं. अक्सर ऐसे नेता अमरीकी जनता को पसंद आते हैं, जो ख़ुद को 'आउटसाइडर' यानी वॉशिंगटन से बाहर वाला कहते हैं.
लेकिन ये एक ऐसा दावा है जो जो बाइडन क़त्तई नहीं कर सकते. क्योंकि उन्होंने अमरीका की शीर्ष राजनीति में लगभग पचास साल का वक़्त गुज़ारा है.
और, वॉशिंगटन की राजनीति में उनके लंबे तजुर्बे को बाइडन के ख़िलाफ़ चुनाव में भुनाया जा सकता है.

बाइडन का लंबा सियासी इतिहास

अमरीका के राजनीतिक इतिहास में पिछले कुछ दशकों में जो कुछ भी बड़ा उतार चढ़ाव देखने को मिला है, उसमें बाइडन किसी न किसी रूप में ज़रूर शामिल रहे हैं. और बाइडन ने इस दौरान जो भी फ़ैसले लिए हैं, वो शायद राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान उनके हक़ में काम न आएं.
1970 के दशक में उन्होंने अमरीकी बच्चों के बीच नस्लीय भेदभाव कम करने के लिए उन्हें एक साथ पढ़ाने का विरोध करने वालों का साथ दिया था. तब दक्षिण के अमरीकी राज्य इस बात के ख़िलाफ़ थे कि गोरे अमरीकी बच्चों को बसों में भर कर काले बहुल इलाक़ों में ले जाया जाए. इस बार के चुनाव अभियान के दौरान, बाइडन को उनके इस स्टैंड के लिए बार-बार निशाना बनाया गया है.
रिपब्लिकन पार्टी के उनके विरोधी अक्सर, ओबामा प्रशासन में रक्षा मंत्री रहे रॉबर्ट गेट्स के उस बयान का हवाला देत हैं, जिसमें गेट्स ने कहा था कि, 'जो बाइडन को नापसंद करना क़रीब क़रीब नामुमकिन है. मगर दिकक़्त ये है कि पिछले चार दशकों में अमरीका की विदेश नीति हो या फिर घरेलू सुरक्षा से जुड़े मसले, इन सभी मामलों में बाइडन हमेशा ग़लत पक्ष के साथ ही खड़े रहे हैं.'
अब जैसे-जैसे चुनाव का प्रचार अभियान तेज़ होगा, तो तय है कि बाइडन को ऐसे सियासी बयानों के ज़रिए निशाना बनाया जाएगा.

बाइडन की पारिवारिक त्रासदियां

ये बाइडन के लिए अफ़सोस की बात है. मगर, एक ऐसा मसला है जिस मामले में वो किसी अन्य राजनेता के मुक़ाबले अमरीकी जनता के ज़्यादा क़रीब दिखाई देते हैं. और वो है मौत.
जब, जो बाइडन, पहली बार अमरीकी सीनेट का चुनाव जीत कर शपथ लेने की तैयारी कर रहे थे, तभी उनकी पत्नी नीलिया और बेटी नाओमी एक कार हादसे में मारी गई थीं. इस दुर्घटना में उनके दोनों बेटे ब्यू और हंटर भी ज़ख़्मी हो गए थे.
बाद में ब्यू की 46 साल की उम्र में 2015 में ब्रेन ट्यूमर से मौत हो गई थी.
इतनी युवावस्था में इतने क़रीबी लोगों को गंवा देने के कारण, आज जो बाइडन से बहुत से आम अमरीकी लोग जुड़ाव महसूस करते हैं. लोगों को लगता है कि इतनी बड़ी सियासी हस्ती होने और सत्ता के इतने क़रीब होने के बावजूद, बाइडन ने वो दर्द भी अपनी ज़िंदगी में झेले हैं, जिनसे किसी आम इंसान का वास्ता पड़ता है.
लेकिन, बाइडन के परिवार के एक हिस्से की कहानी बिल्कुल अलग है. ख़ास तौर से उनके दूसरे बेटे हंटर की.

सत्ता, भ्रष्टाचार और झूठ?

जो बाइडन के दूसरे बेटे हंटर ने वकालत की पढ़ाई पूरी करके लॉबिइंग का काम शुरू किया था. इसके बाद उनकी ज़िंदगी बेलगाम हो गई. हंटर की पहली पत्नी ने उन पर शराब और ड्ग्स की लत के साथ-साथ, नियमित रूप से स्ट्रिप क्लब जाने का हवाला देते हुए तलाक़ के काग़ज़ात अदालत में दाख़िल किए थे. कोकीन के सेवन का दोषी पाए जाने के बाद हंटर को अमरीकी नौसेना ने नौकरी से निकाल दिया था.
एक बार हंटर ने न्यूयॉर्कर पत्रिका के साथ बातचीत में माना था कि एक चीनी ऊर्जा कारोबारी ने उन्हें तोहफ़े में हीरा दिया था. बाद में चीन की सरकार ने इस कारोबारी के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच की थी.

अपनी निजी ज़िंदगी का हंटर ने जैसा तमाशा बनाया उससे बाइडन को काफ़ी सियासी झटके झेलने पड़े हैं. अभी पिछले ही साल हंटर ने दूसरी शादी एक ऐसी लड़की से की थी, जिससे वो महज़ एक हफ़्ते पहले मिले थे. इसके अलावा हंटर की भारी कमाई को लेकर भी बाइडन पर निशाना साधा जाता रहा है.
हंटर का नशे का आदी होना एक ऐसी बात है, जिससे बहुत से अमरीकी लोगों को हमदर्दी हो सकती है. लेकिन, जिस तरह हंटर ने अक्सर मोटी तनख़्वाहों वाली नौकरियों पर हाथ साफ़ किया है. उससे ये बात भी उजागर होती है कि अगर कोई जो बाइडन जैसे किसी बड़े सियासी नेता की औलाद है, तो नशेड़ी होने के बावजूद उन्हें मोटी तनख़्वाहों वाली नौकरियां आसानी से मिल जाती हैं. उनकी ज़िंदगी नशे के शिकार किसी आम अमरीकी नागरिक की तरह मुश्किल भरी नहीं होती.

महाभियोग का भय

हंटर ने मोटी सैलेरी वाली जो नौकरियां कीं, उनमें से एक यूक्रेन में भी थी. बाइडन के बेटे की इसी नौकरी के चलते अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने यूक्रेन के राष्ट्रपति पर इस बात का दबाव बनाया था कि हंटर के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करें.
यूक्रेन के राष्ट्रपति को की गई इसी फ़ोन कॉल के कारण हाल ही में ट्रंप के ख़िलाफ़ महाभियोग की शुरुआत हुई थी. हालांकि, ये सियासी मुहिम ट्रंप को राष्ट्रपति पद से हटाने में नाकाम रही थी. हालांकि, ये एक ऐसा सियासी दलदल था, जिसे लेकर शायद बाइडन ये सोच रखते हों कि काश वो इस झंझट में न पड़े होते.

विदेशी मामले

कूटनीति का लंभाव अनुभव, जो बाइडन की बड़ी सियासी ताक़त है. ऐसे में विदेश से जुड़ा हुआ कोई भी सियासी स्कैंडल उन्हें ख़ास तौर से सियासी नुक़सान पहुंचाने वाला हो सकता है. जो बाइडन, पहले सीनेट की विदेशी मामलों की समिति के अध्यक्ष रह चुके हैं. और वो ये दावा बढ़ चढ़कर करते रहे हैं कि-'मैं पिछले 45 बरस में कम-ओ-बेश दुनिया के हर बड़े राजनेता से मिल चुका हूं.'
भले ही, अमरीकी मतदाताओं को बाइडन के इस दावे से तसल्ली होती हो कि उनके पास राष्ट्रपति बनने का पर्याप्त अनुभव है. लेकिन, ये कहना मुश्किल है कि उनके इस अनुभव के आधार पर कितने लोग बाइडन को राष्ट्रपति पद के लिए चुनना चाहेंगे.
उनके लंबे सियासी अनुभव की तरह ही इस मामले में भी यही कहा जा सकता है कि इस मामले में उनका मिला जुला अनुभव ही रहेगा.
जो बाइडन ने 1991 के खाड़ी युद्ध के ख़िलाफ़ वोट दिया था. लेकिन, 2003 में उन्होंने इराक़ पर हमले के समर्थन में वोट दिया था. हालांकि, बाद में वो इराक़ में अमरीकी दख़ल के मुखर आलोचक भी बन गए थे.
ऐसे मामलों में बाइडन अक्सर संभलकर चलते हैं. अमरीकी कमांडो के जिस हमले में पाकिस्तान में ओसामा बिन लादेन को मार गिराया गया था, बाइडन ने ओबामा को ये हमला न करने की सलाह दी थी.
मज़े की बात ये है कि अल-क़ायदा के नेता ओसामा बिन लादेन को जो बाइडन की कोई ख़ास परवाह नहीं थी. सीआईए द्वारा ज़ब्त किए गए जो दस्तावेज़ जारी किए गए हैं, उनके मुताबिक़, ओसामा बिन लादेन ने अपने लड़ाकों को निर्देश दिया था कि वो राष्ट्रपति बराक ओबामा को निशाना बनाएं. लेकिन, लादेन ने बाइडन की हत्या का कोई फ़रमान नहीं जारी किया था.
जबकि उस वक़्त बाइडन, अमरीका के उप-राष्ट्रपति थे. ओसामा बिन लादेन को लगता था कि, ओबामा की हत्या के बाद बाइडन को ही अमरीका की कमान मिलेगी. मगर लादेन के मुताबिक़, 'बाइडन राष्ट्रपति पद की ज़िम्मेदारियां उठाने के लिए क़त्तई तैयार नहीं थे. और अगर वो राष्ट्रपति बनते हैं तो अमरीका में सियासी संकट पैदा हो जाएगा.'
कई मामलों में जो बाइडन के ख़यालात ऐसे हैं, जो डेमोक्रेटिक पार्टी के युवा कार्यकर्ताओं से मेल नहीं खाते. डेमोक्रेटिक पार्टी के इन युवा समर्थकों को बर्नी सैंडर्स या एलिज़ाबेथ वॉरेन जैसे नेताओं के कट्टर युद्ध विरोधी विचार अधिक पसंद आते हैं. मगर, बहुत से अमरीकी नागरिकों को ये भी लगता है कि जो बाइडन कुछ ज़्यादा ही शांति दूत बनते हैं.
ये वही अमरीकी नागरिक हैं, जिन्होंने इस साल जनवरी में एक ड्रोन हमले में, ईरान के जनरल क़ासिम सुलेमानी की हत्या करने का आदेश देने पर राष्ट्रपति ट्रंप का खुल कर समर्थन किया था.
विदेश नीति से जुड़े ज़्यादातर मामलों में बाइडन का रवैया मध्यमार्गी रहा है. इससे हो सकता है कि डेमोक्रेटिक पार्टी के बहुत से कार्यकर्ताओं में जोश न भरे. लेकिन, बाइडन को लगता है कि बीच का ये रवैया अपना कर वो उन मतदाताओं को अपनी ओर खींच सकते हैं, जो अभी ये फ़ैसला नहीं कर पाए हैं कि ट्रंप और उनके बीच, वो किसे चुनें.
और नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान, उन्हें पसंद करने वालों को बहुत ज़ोर शोर से उनका साथ देने की ज़रूरत नहीं होगी. उन्हें बस बाइडन के हक़ में बिना कोई शोर गुल किए हुए, वोट डालना होगा.

सब कुछ या कुछ भी नहीं

चुनाव से पहले के तमाम सर्वे, व्हाइट हाउस की इस होड़ में जो बाइडन को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से पाँच से दस अंक आगे बताते रहे हैं. लेकिन, नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव अभी भी कई महीने दूर हैं. और तय है कि अभी आगे बाइडन के लिए कई सख़्त इम्तिहान बाक़ी हैं.
दोनों ही पार्टियों के प्रत्याशी पहले ही काले लोगों के ख़िलाफ़ पुलिस की हिंसा के विरोध में अमरीका में हो रहे विरोध प्रदर्शन को लेकर टकरा चुके हैं. इसके अलावा जिस तरह से अमरीकी सरकार ने कोरोना वायरस के संकट से निपटने की कोशिश की है, उसे लेकर भी ट्रंप और बाइडन में भिड़ंत हो चुकी है.
यहां तक कि फ़ेस मास्क भी ट्रंप और बाइडन के बीच सियासी झड़प का कारण बन चुके हैं. ऐसा लगता है कि जो बाइडन कई बार सार्वजनिक रूप से मास्क पहन कर दिखने के लिए ज़रूरत से ज़्यादा प्रयास करते हैं, वहीं, राष्ट्रपति ट्रंप, मास्क पहनने से बार-बार परहेज़ करते आए हैं.
लेकिन, कई बार इमेज चमकाने की इन छोटी मोटी कोशिशों से इतर राजनीतिक चुनाव प्रचार के प्रबंधन में कई बड़ी चीज़ें दांव पर लगी होती हैं.
अगर, जो बाइडन राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतते हैं, तो वो अपने लंबे और उतार चढ़ाव भरे राजनीतिक करियर के शिखर पर पहुंच जाएंगे. लेकिन, अगर वो चुनाव नहीं जीत पाते हैं, तो इससे वो व्यक्ति चार और वर्षों के लिए अमरीका का राष्ट्रपति बन जाएगा, जिसके बारे में बाइडन का कहना है कि, 'उसमें अमरीका का राष्ट्रपति बनने की बिल्कुल भी क़ाबिलियत नहीं है. वो एक ऐसा इंसान है, जिस पर क़त्तई भरोसा नहीं किया जा सकता है.'
आज से चार साल पहले, 2016 में जब जो बाइडन इस बात की दुविधा में थे कि राष्ट्रपति चुनाव की रेस में दाख़िल हों या नहीं, तब उन्होंने कहा था कि, 'मैं इस बात की तसल्ली लेकर ख़ुशी से मर सकता हूं कि मैं राष्ट्रपति नहीं बन सका.'

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.