Tuesday, June 9, 2020

लद्दाख में चीन की हरकत के पीछे है ड्रैगन की बड़ी रणनीतिक साजिश

आज की दिल्ली / इंडियन न्यूज़ ऑनलाइन :



नई दिल्ली
यह भारतीय राजनयिकों और जनरलों का चीनी समकक्षों के साथ बातचीत का एक असामान्य माहौल था क्योंकि दोनों देशों के बीच सीमा से जुड़े मुद्दों को विदेश मंत्रालय के स्तर पर सुलझाया जाता रहा है। हालांकि मौजूदा दांव से कुछ हासिल होता हुआ नहीं दिख रहा है।
ऐतिहासिक तौर पर देखें तो चीनी ने अक्साई चीन का बड़े हिस्से पर कब्जा कर रखा है और वह उसे लौटाने से इनकार कर चुका है। इसी कारण 1962 की लड़ाई हुई थी। 1998 से भारत और चीन के नेताओं के बीच तमाम शांति समझौते और 22 दौर की उच्च स्तरीय बातचीत होने के बाद भी पेइचिंग हमारा नक्शा स्वीकार नहीं कर रहा है और लद्दाख पर हमारे LAC के दावे को नहीं मान रहा है।

चीन में बिना उच्च स्तरीय रणनीतिक दिशानिर्देश के बिना कुछ नहीं होता है। एक तरफ जहां भारत कोरोना वायरस से जंग लड़ रहा था वहीं, चीनी सेना ने सीमा पर भारतीय सेना और साउथ ब्लॉक को चौंका दिया। यह कुछ वैसा ही था जैसे 1999 में करगिल में घुसपैठ हुई थी। चीनी सेना द्वारा खासतौर पर LAC के करीब कब्जाए गए भूभाग करीब 30 स्क्वायर किलोमीटर हो सकता है। अब यहां यह सवाल है कि आखिर चीन ने यह अभी क्यों किया और हमें क्या मिलेगा या फिर हम चीन से क्या हासिल करेंगे?

इस समय चीन के जेहन में तीन मुद्दे चल रहे होंगे। पहला, कोरोना वायरस से सही तरीके से नहीं निपटने का पूरी दुनिया का आरोप झेल रहा चीन इससे निकलने के लिए छटपटा रहा होगा। हांगकांग में का मुद्दा भी चीन को परेशान कर रहा है। इसलिए पेइचिंग ऐसे वक्त में अपनी जनता, प्रवासियों विकासशील देशों में अपने मित्रों को यह जताना चाह रहा होगा कि सबकुछ ठीक है। यही वजह है कि चीन साउथ चाइना सी और भारत के साथ सीमा विवाद के जरिए ताकत दिखाने की कोशिश कर रहा है।

दूसरा, चीन अक्साइ चीन के उत्तरी हिस्से को जोड़ने के लिए आतुर है। वह जमीन पर कब्जा कर अपने अहम रोड लिंक (हाइवे 219) की पहुंच बढ़ाना चाहता है। यह रोड कशगर को शिनजियांग से तिब्बत के ल्हासा तक को जोड़ता है। पश्चिमी चीन में दो सीमावर्ती इलाके उसकी दुखती रग हैं। चीन की सामरिक रणनीति उत्तर में गलवान नदी से काराकोरम दर्रे तक पहुंचना है और फिर वहां से शकगाम घाटी। पाकिस्तान ने चीन से गठजोड़ के बदले शकगाम घाटी दे दी थी। चीन का यहां 1963 से कब्जा है।

तीसरा, चीन लद्दाख क्षेत्र में हमेशा से ज्यादा पानी की तलाश करता रहा है क्योंकि सिंधु नदी तिब्बत से निकलकर लद्दाख होते हुए पाकिस्ती के उत्तरी इलाके (हम इसे POK कहते हैं) तक जाता है। चीन का अजेंडा सिंधु नदी के प्रचुर पानी के जरिए माइक्रोचिप्स बनाने के लिए करना चाहता है। सिलिकन वेफर्स के लिए बहुत मात्रा शुद्ध पानी की जरूरत होती है। (10 हजार लीटर पानी की जरूरत 30cm वेफर्स के लिए) यह पानी सिंधु घाटी का पानी है और चीन इसे पाकिस्तान से चाहता है।

चीन ने 2018 में अमेरिका, जापान और ताइवान से 230 अरब डॉलर का माइक्रोचिप्स इंपोर्ट किया है। चीन अब यह खुद ही बनाना चाहता है। इसके लिए उसे सिंधु नदी का साफ पानी चाहिए और वह शकगम घाटी में इस पानी को कई छोटी नदियों में इकट्ठा करना चाहता है। चीन की नजरें तो कश्मीर के पानी पर भी 1950 से ही है और अब वह POK में सिंधु नदी पर 5 बड़े बांध बनाने के लिए वित्तीय मदद देने पर सहमत हुआ है।

गलवान घाटी में चीन के घुसपैठ के बाद चीनी सेना इस स्थिति में है कि वह भारत के श्योक नदी के करीब सड़क निर्माण के काम में दखल दे सकता है क्योंकि इस निर्माण से चीन का काराकोरम पास और POK की तरफ जाना मुश्किल होगा। इस बात की संभावना भी कम है कि चीनी सेना LAC पर भारत के दावे वाले क्षेत्र से हटने को तैयार होगी। भले ही भारत चाहे चीन को जो भी भरोसा दिलाए।

कई बार ऐसा हुआ की चीन मैकमोहन रेखा को स्वीकार करने के करीब पहुंच गया था। अक्साइ चीन के बदले चीन यह रेखा मानने को तैयार था। अगर भारत सही मायनों में सीमा विवाद का हल चाहता है कि तो उसे 1960 में झाउ इनलाइ के प्रस्ताव पर पुनर्विचार करना चाहिए। डेन जियाओपिंग ने भी 1980 में इस प्रस्ताव को दोहराया था। वरना शी जिनपिंग और पीएम नरेंद्र मोदी के बीच द्विपक्षीय बैठक केवल फोटो का अवसर ही रह जाएगा।

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