Saturday, December 24, 2022

क्रिसमस का त्यौहार सही मायनों में कैसे मनाएं ? - संत राजिन्दर सिंह जी महाराज



आज विश्वभर में क्रिसमस का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस दिन ईसा मसीह का जन्म हुआ था। ईसा मसीह का मूल संदेश, प्रेम का संदेश था। उनकी इन शिक्षाओं के आधार पर ही ईसाई धर्म की शुरूआत हुई। ईसा ने अपने शिष्यों को जो महान संदेश दिया, उसको दो आज्ञाओं में समेट सकते हैं। पहला “आप अपने प्रभु को पूर्ण हृदय से, पूर्ण आत्मा से तथा पूरे मन से प्यार करें।” और दूसरा ़“अपने पड़ोसी से ऐसे ही प्यार करो जैसा हम अपने आपसे करते हैं।”
आज के दिन खुशियों के इस त्यौहार पर लोग एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं तथा भेंट व शुभकामनाएं देते हैं, जिससे कि सारा वातावरण प्रेम से भरपूर हो जाता है। प्रेम करना ही सदा का प्रेम पाना है। जब हम दूसरों को प्रेम करते हैं तो स्वाभाविक रूप से हम वापसी में भी प्रेम प्राप्त करते हैं। यदि हम सब एक-दूसरे को प्रेम बांटेंगे तो उसका प्रभाव यह होगा कि यह संसार एक स्नेहमयी स्थान बन जाएगा।
यदि हम औरों को प्रेम देते हैं तो अंत में हम भी अधिक प्यार पाते हैं। जिसका कारण यह है कि प्रेम एक ऐसा गुण है जो न सिर्फ नफ़रत, हिंसा, स्वार्थ, लोभ और क्रोध को खत्म करता है बल्कि इससे हमारे अंदर के सभी नकारात्मक विकार भी नष्ट हो जाते हैं। इसके द्वारा हम शांति, आनंद और मस्ती से सराबोर हो जाते हैं। जितना अधिक हम संसार को प्रेम देते हैं, उतना अधिक वह लोग जिन्होंने प्रेम का अनुभव नहीं किया होता, उसे पाकर वे खुशी से भरपूर हो जाते हैं। परिणामस्वरूप उनका जीवन बदल जाता है और वे अनुभव करते हैं कि उनके जीवन में क्रोध और नफरत की तुलना में प्रेम कितना अधिक मूल्यवान है।
लोग जितना अधिक प्रेम के ठंडक देने वाले हाथों का स्पर्श पाते हैं, वह उतना ही खुश होते हैं और उस प्रेम की खुशी को औरों में बांटते हैं। समय के साथ-साथ हमारे द्वारा दूसरों को दिया गया यह प्रेम बर्फ की उस गेंद के समान है जो पहाड़ी से नीचे की ओर लुढ़कती हुए बड़ी और बड़ी होती जाती है और एक गतिशीलता से कार्य करती है। अर्थात हमारे अंदर प्रेम का विस्तार होना शुरू हो जाता है और यह प्रेम हमसे औरों में भी फैलता है। इस प्रकार धीरे-धीरे यह संसार प्रेम का एक ऐसा स्थान बन जाएगा, जहाँ हरेक की ज़िंदगी प्रेम, खुशी, आनंद और रोशनी से भरपूर होगी।
हम ऐसी अवस्था को कैसे प्राप्त कर सकते हैं? जहाँ हम दूसरों से प्रेम  चाहने की अपेक्षा उन्हें प्रेम दें। आध्यात्मिक मार्ग पर चलकर ही हम दूसरों के प्रति अपने अंदर प्रेम का विकास कर सकते हैं। इसके लिए हमें प्रतिदिन ध्यान-अभ्यास में समय देना होगा क्योंकि ध्यान-अभ्यास न सिर्फ हमारे मन को शांत करता है बल्कि यह हमारे भीतर प्रभु के प्रेम को भी जागृत करता है।
जैसे-जैसे हम ध्यान-अभ्यास में तरक्की करते हैं तो हम प्रभु के प्रेम की मस्ती की धारा में हमेशा मग्न रहते हैं। जब हमारी आत्मा प्रभु-प्रेम की मस्ती की इस धारा में डुबकी लगाती है तो इसके द्वारा हमारी आत्मा इस शरीर से ऊपर उठकर अंतर के दिव्य-प्रेम और आनंद के मंडलों में उड़ान भरने लगती है और अंतर में प्रभु के प्रेम का अनुभव करती है क्योंकि प्रभु प्रेम है, हमारी आत्मा भी उनका अंश होने के नाते प्रेम है और प्रभु के पास वापिस जाने का मार्ग भी प्रेम ही है।
जब हम ध्यान-अभ्यास से इस तरह के दिव्य-प्रेम का अनुभव करते हैं तब हम प्राकृतिक रूप से इसे दूसरों में फैलाते हैं। हम जहाँ कहीं भी जाएं, प्रेम के प्रकाश-स्तंभ बन जाते हैं। हम उस प्रेम को न केवल अपने परिवार, मित्रों और प्रियजनों में बांटते हैं बल्कि अजनबियों को भी लुटाते हैं। अंततः में हम पूरी दुनिया में प्रेम को फैलाने वाले प्रकाश-स्तंभ बन जाते हैं।
ध्यान-अभ्यास द्वारा हम विश्व को दो महानतम उपहार प्रदान कर सकतेहैं। एक ‘विश्व-प्रेम’ दूसरा ‘विश्व-शांति’। ईसा मसीह यही चाहते थे कि उनके शिष्य सिर्फ उनका संदेश सुनें ही नहीं, बल्कि उसे अपने जीवन में भी ढालें। प्रभु के संदेश को बहुत से लोग सुनते हैं पर उनमें से बहुत कम लोग उसे समझते हैं और जो लोग उसे समझते हैं, उनमें से बहुत ही कम होते हैं जो उसे अपने जीवन में ढालते हैं।
तो आईये! क्रिसमस के इस पावन त्यौहार पर हम ईसा मसीह की शिक्षाओं   को अपने जीवन में ढालें। यदि हम ईसा मसीह की आज्ञाओं पर चलेंगे तो यकीनन सही मायनों में क्रिसमस मनाएंगे।

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