Saturday, May 18, 2024

दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी कार्यालय राजीव भवन में आयोजित संवाददाता को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी महासचिव व मीडिया और कम्युनिकेशन विभाग के चेयरमैन श्री जयराम रमेश ने दिल्ली के प्रदूषण और पर्यावरण पर विशेष संवाददाता सम्मेलन को सम्बोधित किया।


 चार चरण में लोकसभा की 379 सीटों में चुनाव के बाद ही इंडिया गठबंधन को स्‍पष्‍ट और निर्णायक बहुमत मिलना तय होने के बाद प्रधानमंत्री मान चुके है की 4 तारीख को वह आउटगोइंग प्रधानमंत्री होंगे। -- जयराम रमेश

 

दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण की प्रथम जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है, जिसकी विफलता के कारण दिल्ली में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर रहता है। - जयराम रमेश

 

पिछले 10 वर्षों मे 11 बिजली उत्पादन स्टेशनों में वायु प्रदूषण के मानकों का उल्लंघन होता रहा है, जिसका खतरनाक प्रभाव सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ा है। - जयराम रमेश

 

नई दिल्ली, 17 मई, 2024--- श्री अनिल भारद्वाज ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे बहुत सम्मानित पत्रकार और छायाकार मित्रों, आप सबका प्रदेश कांग्रेस कमेटी की तरफ से मैं स्वागत करता हूं और आभार प्रकट करता हूं कि हमारे निमंत्रण पर आज समय निकालकर आप इस विशेष पत्रकार वार्ता में पधारे हैं। आज पत्रकार वार्ता को, हमें सौभाग्य है कि हमारे एक ऐसे नेता, एक ऐसे हिंदुस्तान की शख्सियत जो किसी परिचय के लिए और कम से कम आप सबके लिए परिचय के मोहताज नहीं हैं।


मैं परिचय तो उनका क्या दे सकता हूं, लेकिन यह मैं कह सकता हूं कि पिछले दिनों में हमारे जननायक नेता श्री राहुल गांधी जी के साथ कदम से कदम मिलाकर कन्याकुमारी से कश्‍मीर तक की लगभग 4,000 किलोमीटर की दूरी जिन्‍होंने तय की और नॉर्थ ईस्टर्न स्‍टेट मणिपुर से मुंबई तक 6,000 से ज्‍यादा किलोमीटर की यात्रा भी उन्‍होंने पूरी की और एक बहुत बड़ा अनुभव तथा इस देश के लोगों का किस तरह का जीवन यापन है, आज क्‍या-क्‍या परेशानियां लोग झेल रहे हैं, किस तरह से इन सरकारों से त्रस्‍त और परास्‍त हैं, ऐसे हमारे आदरणीय जनरल सेक्रेट्री इंचार्ज मीडिया, कम्‍युनिकेशन एआईसीसी आदरणीय श्री जयराम रमेश सर से मैं अनुरोध करूंगा कि वह पत्रकार वार्ता को शुरू करें।

 

श्री जयराम रमेश ने कहा कि शुक्रिया अनिल। पहले तो आप लोग सोच रहे होंगे कि मैं डीपीसीसी में क्‍यों यह प्रेस कॉन्‍फ्रेंस कर रहा हूं। इसीलिए मैं पहले ही बता दूं आपको कि यह प्रेस वार्ता दिल्‍ली के चुनाव के संदर्भ में है और सिर्फ पर्यावरण से जुड़े हुए मुद्दों पर है। इसीलिए मुझे कहा गया- कि आप आइए, क्‍योंकि यह बहुत बड़ा गंभीर विषय है दिल्‍ली के लिए, दिल्‍ली वासियों के लिए। पर्यावरण से लेकर चार या पांच जो मुद्दे चर्चा में रहे हैं, इस पर बातचीत होती रहती है, इसके बारे में कांग्रेस का क्‍या विचार है, क्‍या सोच है।

 
मैं दिल्‍ली की राजनीति पर बोलने के लिए यहां नहीं आया हूं। आपके जो कुछ सवाल हैं, वह हमारे अनिल भारद्वाज जी से पूछिए, देवेन्‍द्र यादव जी से पूछिए, हमारे दीपक बाबरिया से पूछिए। मैं सिर्फ पर्यावरण पर ही बोलूंगा, पर्यावरण तक ही मेरी प्रेस कॉन्‍फ्रेंस सीमित रहेगी। पहले तो मैं शुरूआत करूंगा कि चार चरण के चुनाव हो चुके हैं लोक सभा के, 379 सीटों में चुनाव हो चुका है और 25 तारीख को दिल्‍ली की 7 सीटों पर चुनाव होने वाला है। इन चार चरणों के बाद यह बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट हो गया है, साफ हो गया है कि कांग्रेस पार्टी और इंडिया जनबंधन की पार्टियों को स्‍पष्‍ट और निर्णायक बहुमत मिलने वाला है।

 
प्रधानमंत्री की भाषा से यह जरूर महसूस होता है कि वह घबराए हुए हैं और जिस तरीके से वह बार-बार झूठ बोल रहे हैं, झूठ की महामारी फैलाने में लगे हैं और बाद में कहते हैं – मैंने यह कुछ नहीं कहा। थोड़ा याददाश्‍त भी वह खो रहे हैं मेरे ख्‍याल से। तो प्रधानमंत्री की परेशानी से, पीढ़ा से, दुख से यह बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट होता है कि वह बौखला गए हैं, वह जान गए हैं कि चार तारीख को वह आउटगोइंग प्रधानमंत्री हैं। तो इसमें दिल्‍ली के चुनाव के पहले ही, 25 तारीख के पांचवे चरण के चुनाव के पहले ही इंडिया जनबंधन की पार्टियों को, कांग्रेस पार्टी को मैं समझता हूं स्‍पष्‍ट और निर्णायक बहुमत मिलना तय हो चुका है।


दिल्‍ली के चुनाव में पर्यावरण एक विशेष स्‍थान रखता है और मैं आज आपके सामने, आपके समक्ष दिल्‍ली से संबंधित पांच पर्यावरणिक मुद्दों के बारे में बात करना चाहता हूं। पहली बात तो यह है कि दुनिया भर के शहरों में, महानगरों में अगर आप देखें दिल्‍ली उसी कैटेगरी में आएगा जो सबसे प्रदूषित शहर है। वायु प्रदूषण, इतनी भयंकर मात्रा में है दिल्‍ली में। अगर आप तुलना करें अन्‍य महानगरों से हमारे देश में, विश्‍व भर के महानगरों में, तो दिल्‍ली का स्‍थान पहले या दूसरे नंबर पर आता है और दिल्‍ली जिस जगह स्थित है और दिल्‍ली का एडमिनिस्‍ट्रेटिव सिस्‍टम जो है, वह केंद्र सरकार पर प्राथमिक जिम्‍मेदारी डालता है।


अगर केंद्र सरकार इसमें अपनी जिम्‍मेदारी नहीं निभाएगी, किसी भी केंद्र सरकार की बात मैं कर रहा हूं, तो दिल्‍ली के पर्यावरण की समस्‍याएं सिर्फ दिल्‍ली सरकार इससे निपट नहीं सकती, प्राथमिक जिम्‍मेदारी केंद्र सरकार की है, क्‍योंकि दिल्‍ली की पर्यावरण की समस्‍याएं उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्‍थान, अलग-अलग राज्‍यों से भी जुड़ी हुई है, क्‍योंकि जिस जगह में दिल्‍ली स्थित है। तो पहली बात तो यह है कि वायु प्रदूषण को लेकर पिछले 10 साल में जो प्रयास किए गए हैं, जो दावा किया गया है, उसका असर देखने को नहीं मिल रहा है और दिल्‍ली वासियों के लिए आज सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य के लिए वायु प्रदूषण एक बहुत बड़ी गंभीर समस्‍या बन गई है । नेशनल क्‍लीन एयर प्रोग्राम, राष्‍ट्रीय स्‍वच्‍छ वायु कार्यक्रम की घोषणा की गई थी, उसका कुछ असर नहीं हुआ है।

 
दिल्‍ली के आसपास 11 बिजली स्‍टेशन हैं, जो कोयला इस्‍तेमाल करते हैं। 11 ऐसे बिजली स्‍टेशन हैं, जो दिल्‍ली के लिए ऊर्जा पैदा करते हैं, वह कोयला का इस्‍तेमाल करते हैं और इसमें, जब मैं पर्यावरण मंत्री था, मैं बोल सकता हूं विश्‍वास के साथ सारे बिजली के स्‍टेशनों के लिए वायु प्रदूषण मानक तय किए गए थे और इस मकसद के साथ कि यह मानक लागू हों और जो स्‍टेशन मानक का उल्‍लंघन होता है उन स्‍टेशनों में, उसको हम बंद करा देंगे। यह निर्णय लिया गया था 2009 में। आज असली बात यह है कि 11 में से जो बिजली स्‍टेशन हैं, 9 स्‍टेशनों में किसी ना किसी मानक का उल्‍लंघन हुआ है। पहले मोदी सरकार ने कहा – 2017 के पहले यह मानक पालन करना अनिवार्य है, बाद में 2019 बना, बाद में 2021 बना, अभी कहा गया है कि 2027 तक यह मानक का पालन आप कर सकते हैं।

 

तो जो तय किया गया था दो साल के अंदर, 2013 के पहले ही सारे 11 बिजली स्‍टेशनों में जो वायु प्रदूषण के मानक तय किए गए थे और यह बड़े प्रगतिशील मानक थे, विज्ञान के आधार पर यह मानक तय किए गए थे, उसका बार-बार उल्‍लंघन हुआ है और मोदी सरकार ने, केंद्र सरकार ने इसके बारे में कुछ कार्रवाई नहीं की है और इसका नतीजा यह है कि आप पंजाब को दोषी ठहराओ, हरियाणा को दोषी ठहराओ, उत्तर प्रदेश को दोषी ठहराओ, पर असली बात यह है कि दिल्‍ली के आसपास जो 11 बिजली घर हैं, जिसकी जिम्‍मेदारी केंद्र सरकार के पास है, वहां वायु प्रदूषण के मानक का उल्‍लंघन होता रहा है पिछले 10 साल में और इसका नतीजा सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य पर पड़ा है।


तो पहली बात तो यह है वायु प्रदूषण को लेकर जिस गंभीरता से इनफोर्समेंट होना था, कानून लागू होने थे, मानक लागू होने थे, वह नहीं हुआ है और दिल्‍ली की जनता वह भुगत रही है। दूसरी बात, दिल्‍ली में रासायनिक प्रदूषण या इसको आप कह सकते हैं रासायनिक प्रदूषण, यानी कि कैमिकल कंटेमिनेशन। हमारे देश में तीन ऐसे प्रतीक हैं सिर्फ दिल्‍ली में ही, भयंकर रासायनिक संदूषण के प्रतीक। एक गाजीपुर है, दूसरा ओखला है और तीसरा भलस्‍वा है। तीनों जगह मैं गया हूं, तीनों के लिए हमने योजनाएं तैयार की थीं 2010 में, आज भी यह सेनेटरी लैंडफिल, जो कहा जाता है इन तीन साइटों के लिए, गाजीपुर, ओखला और भलस्वा, तीनों रासायनिक संदूषण के खतरनाक प्रतीक बन चुके हैं और इसके बारे में केंद्र सरकार की ओर से कोई कदम नहीं लिया गया है। 12 साल हो गए हैं, इसमें दस साल मोदी सरकार के ही हैं, परियोजना तय की गई थी, मेरी याददाश्त में 2013 को, 2014 में मोदी सरकार आई। दस साल उनके पास था। गाजीपुर, भलस्वा और ओखला में जो रासायनिक संदूषण है, उससे निपटने के लिए वहाँ कोई कार्यवाई नहीं हुई।

 

तीसरी बात, जो पर्यावरण के संदर्भ में महत्व रखता है दिल्ली में, ये अरावली जो है, अरावली पहाड़, जो माउंटेन रेंज है अरावलियों का, यहाँ जो अवैध खनन हुआ करता था एक जमाने में और आज भी कानून का उल्लंघन करके अवैध खनन होता है, इललीगल कंस्ट्रक्शन होता है, पेड़ काटे गए हैं, लाखों पेड़ काटे गए हैं, डिफॉरेस्टेशन हुआ है और इसकी वजह से दिल्ली की जलवायु पर भी इसका दूर असर पड़ा है और केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकती। क्योंकि अलग-अलग राज्य इसमें जुड़े हुए हैं। अरावली में तो गुजरात भी जुड़ा हुआ है, राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, सब जुड़े हुए हैं।


तो केंद्र सरकार के बिना कोई कदम नहीं लिया जा सकता। तो अरावली में जो हम देख रहे हैं, अवैध खनन देख रहे हैं, गैर कानूनी कंस्ट्रक्शन जो है, इस पर बार-बार सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणियां की हैं, पर इसके बावजूद कोई फर्क नहीं पड़ा है और अरावली के विनाश के कारण दिल्ली की जलवायु पर इसका नकारात्मक असर पड़ा है। इस पर भी केंद्र सरकार ने पिछले दस साल में कोई महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाए हैं।


चौथा, ईंट के जो भट्ठे होते हैं, करीब 350 ईंट के भट्टे हैं दिल्ली के आस-पास और मैं कई ईंट के भट्टों में गया हूं और इन ईंट के भट्ठों पर कैसे हम अग्निकरण करें ताकि इनसे वायु प्रदूषण कम हों, इन पर भी परियोजनाएं तैयार की गई थी। इसमें उत्तर प्रदेश का सहयोग चाहिए, क्योंकि ज्यादातर ईंट के भट्टे उत्तर प्रदेश में हैं। इसमें हरियाणा सरकार का योगदान भी है, क्योंकि इसमें इंट के काफी भट्टे झज्जर में हैं और अलग-अलग जिलों में है हरियाणा के। तो इसलिए मैं कहता हूं घुमा-फिरा कर केंद्र सरकार को इनिशिएट लेना जरूरी है, क्योंकि अलग राज्य इसमें शामिल हैं, सिर्फ दिल्ली सरकार कुछ नहीं कर सकती या हमारी सरकार थी,या आम आदमी पार्टी की सरकार है, पर बीजेपी की भी सरकार हो, कोई भी सरकार हो, केंद्र सरकार पर ही प्राथमिक जिम्मेदारी पड़ती है। ये ईंट के भट्ठे जो प्रभाव है दिल्ली की वायु पर, इसको हम कभी नजरअंदाज नहीं कर सकते।


पांचवा और अंतिम मुद्दा, जो मैं दिल्ली के संदर्भ में उठाना चाहता हूं, दिल्ली के  पर्यावरण के संदर्भ में उठाना चाहता हूं, वो यमुना को लेकर है। मनमोहन सिंह के कार्यकाल में येप, YAP, यमुना एक्शन प्लान, जापान सरकार की सहयोगिता से हमने मदद ली। यमुना एक्शन प्लान वन और यमुना एक्शन प्लान टू हमने लागू किया और हमने ये साफ कहा, स्पष्ट कहा, जैसे कि हमने गंगा के संदर्भ में कहा था कि हमारा मकसद सिर्फ निर्मल यमुना का नहीं है, पर अविरल यमुना का भी है। मैंने बार-बार कहा है गंगा के संदर्भ में कि हमारा मिशन गंगा मिनरल गंगा और अविरल गंगा, दोनों हमारे लिए महत्व रखते हैं।

 

ऐसे ही यमुना में भी मिनरल यमुना और अविरल यमुना। नमामि गंगे बना 2014 में, ये यमुना एक्शन प्लान को खत्म किया गया और इसको नमामि गंगे में जोड़ा गया, ठीक है। क्योंकि यमुना गंगा से जुड़ा हुआ है। पर एनजीटी के आदेशों के बावजूद जो लापरवाही हुई है पिछले दस सालों में यमुना को लेकर, मैं समझता हूं अभी यमुना उसी हालत में है, उसी स्थिति में है, जो पिछले दस साल या बारह साल में थी। निर्मलता और अविरलता पर नमामि गंगे का कोई असर नहीं हुआ है और यमुना आप जानते हैं दिल्ली के लिए इतना महत्व रखता है, तो यमुना नदी प्रदूषण को लेकर बातें तो प्रधानमंत्री तो बहुत कुछ करते हैं। क्रूज लगाते हैं गंगा में, पर यमुना में उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया है। यमुना एक्शन प्लान को खत्म कर दिया है।


एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने एक समिति का गठन भी किया था, उस समिति को भी इन्होंने खत्म कर दिया। नमामि गंगे का ये एक हिस्सा बन गया, पर अविरलता और निर्मलता पर कोई असर नहीं हुआ। तो साथियों संक्षिप्त में ये कहूंगा कि इंडिया जनबंधन की जो सरकार बनने वाली है, मैं अगर बनने वाली है नहीं कह रहा हूं। मैं कह रहा हूं अभी बनने वाली है, इंडिया गठबंधन सरकार की प्राथमिकता अपने काम से, अपने कार्यों से, सिर्फ कागजी वायदे नहीं हैं, ये भाषणों के लिए नहीं है, पर अपने काम से ये पांच जो मुद्दे मैंने उठाए हैं दिल्ली के संदर्भ में, उसको प्राथमिकता जरुर देगी।


वायु प्रदूषण, रासायनिक संदूषण, अरावली को फिर से वृक्षारोपण, अवैध माइनिंग और कंस्ट्रक्शन को खत्म करना, यमुना एक्शन प्लान को फिर से एक बार पुनर्जीवित करना और जो एनजीटी के आदेश हैं, जो मानक तय किए गए हैं गुणवत्ता के लिए, उसको एक समय सीमा के अंदर उसको हासिल करना। यहाँ के बिजली घरों में जो प्रदूषण के मानक का उल्लंघन हो रहा है, फौरन उनके खिलाफ कार्रवाई करना और जो अलग-अलग प्रदूषण के स्रोत हैं, जिसमें ईंट के भट्ठे विशेष महत्व रखते हैं, उनकी भी जो समस्याएं हैं, उनको भी हमें इस परियोजना में शामिल करके दिल्लीवासियों के लिए हम राहत पहुंचाने की गारंटी देते हैं।

 

सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए ये पर्यावरण मुद्दे बहुत महत्वपूर्ण हैं। ये पर्यावरण सिर्फ एक मध्य वर्गीय मुद्दा नहीं रहा। एक जमाना हुआ करता था, लोग कहते थे कि ये पर्यावरण की बात क्यों करते हो, ये तो मीडिल क्लास इशू है। आज ये मीडिल क्लास इशू नहीं है, ये एक सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ अत्यंत संवेदनशील और महत्वपूर्ण विषय है। सभी पर असर करता है, मध्यम वर्ग के हों, उच्च वर्ग के लोग हों, गरीब हों, कोई फर्क नहीं है, सभी लोग पीड़ित हैं प्रदूषण से और संदूषण से और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर इसका काफी नकारात्मक असर पड़ा है और हमारी सरकार, इंडिया जनबंधन की सरकार पहचानती है कि अगर केंद्र सरकार जिम्मेदारी नहीं लेती, दिल्ली के पर्यावरण की समस्याओं का हल कभी नहीं होगा।


तो इसलिए मैं आज क्योंकि 25 तारीख को चुनाव होने वाले हैं। मैं हमारी पार्टी की ओर से दिल्लीवासियों को ये आश्वासन फिर से दिलाना चाहता हूं कि दिल्ली के प्रदूषण और संदूषण, जो मुद्दे मैंने उठाए हैं, उसको प्राथमिकता देगी इंडिया जनबंधन की सरकार और हम एक समय सीमा के अंदर फर्क दिखाएंगे कि दिल्ली महानगर जो हमारे देश की राजधानी है, यहाँ लोग ऐसे स्वच्छ वायु का उनको अनुभव हो, यमुना में पानी देख सकें, निर्मल पानी देख सकें। यहाँ हरियाली एक जमाने में जो हुआ करती थी, वो फिर से हम देख सकें और जो बार-बार कानून बनाए गए हैं, जो नियम बनाए गए हैं, इनका बार-बार उल्लंघन होता है, उसके खिलाफ हम कड़ी से कड़ी कार्यवाई कर सकें।

 

एक प्रश्न पर कि क्या पर्यावरण में आपने केजरीवाल सरकार को क्लीन चिट दे दी है? श्री जयराम रमेश ने कहा कि नहीं, बिल्कुल ये गलत है। मेरे कहने का ये मतलब है कि किसी एक सरकार को हम दोषी नहीं ठहरा सकते, क्योंकि दिल्ली का एडमिनिस्ट्रेटिव सिस्टम देखिए, दिल्ली कहाँ स्थित है, वो देखें, भौगोलिक तरह से वहाँ देखें और एक प्रशासनिक नजरिए से देखें तो आपको पता लग जाएगा कि प्राथमिक जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होती है।

 

पर्यावरण के संदर्भ में पूछे एक अन्य प्रश्न पर के उत्तर में श्री जयराम रमेश ने कहा कि मैं आपको आंकड़े देता हूं, ये सरकारी आंकड़े हैं। ये केंद्र सरकार के आंकड़े हैं, कि 11 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट सेंशन हुए थे, सिर्फ 6 कंप्लीट हो चुके हैं, कमिशन हो चुका है और जो सीवेज रोड़ जाता है यमुना में, उसका सिर्फ मात्र आधा हिस्सा इन प्लांट के द्वारा जाता है। तो जितने प्लांट लगने चाहिए थे, 11 प्लांट लगने चाहिए थे, सिर्फ 6 लगाए गए हैं। उन 6 में से 3 या 4 बंद पड़े हुए हैं, वो काम नहीं कर रहे हैं। तो ये यमुना में प्रदूषण का एक बहुत महत्वपूर्ण कारण सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का ना होना है। इसलिए यमुना एक्शन प्लान तैयार किया गया था।  

एक अन्य प्रश्न पर कि जैसा आपने कहा क्या कोल प्रोडक्शन टाइम फ्रेम में हो जाएगा? श्री जयराम रमेश ने कहा कि 2017 तक टाइम दिया गया था इन पावर प्लांट को, 2017 तक। ये मानक तय किया गया था 2011 में। 2017 तक समय दिया गया था इन 11 पावर प्लांट को। 2017 के बाद 2019 बना, 2019 के बाद 2021 बना और 2021 में मोदी सरकार, पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि आपको 2027 तक समय है। मैं समझता हूं कि दो साल के अंदर, बहुत हो चुका है, 2013, यानी कि 11 साल हो चुके हैं, दो साल, दो साल बढ़ा रहे हैं। मेरे विचार में मैक्सिमम दो साल के अंदर इन सभी मानकों का पालन करना अनिवार्य बनना चाहिए और जो कोई पावर प्लांट ये मानकों का पालन नहीं करता, उसको बंद कर देना चाहिए।

 

एक अन्य प्रश्न पर कि केजरीवाल सरकार कहती है कि दिल्ली में प्रदूषण के लिए पंजाब जिम्मेदार है, क्या आप सहमत हैं? श्री जयराम रमेश ने कहा कि इसके बारे में पार्लियामेंट में कई सवाल पूछे गए हैं कौन जिम्मेदार है। पर मैं ये कहूंगा, मैं वही जवाब दूंगा आपको, दिल्ली में पर्यावरण की समस्याएं पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान की सरकारों के सहयोग के बिना हो नहीं सकता। सभी का सहयोग होना जरूरी है और वो सहयोग कौन हकीकत में बदल सकता है केंद्र सरकार। तो कोई जिम्मेदार है, तो केंद्र सरकार है। अगर मैं केंद्र सरकार में होता, मैं पर्यावरण मंत्री था 26 महीने के लिए, मैंने जिम्मेदारी ली दिल्ली के पर्यावरण के लिए, यमुना में मैं गया था, अरावली में शीला जी और मैं गए थे। मैंने शीला जी से कहा आप मुख्यमंत्री हैं दिल्ली की, मैं पर्यावरण मंत्री हूं भारत सरकार का, पर मेरा दायित्व बनता है, मेरी जिम्मेदारी बनती है कि दिल्ली के पर्यावरण के लिए मैं भी जिम्मेदारी लूं। ये क्या होता है आप केंद्र सरकार से पूछो, केंद्र सरकार कहती है दिल्ली सरकार। दिल्ली से सरकार से पूछो, कहती है पंजाब सरकार। पंजाब सरकार कहती है, हरियाणा सरकार। ये फुटबॉल जो है ना जाता रहता है। असली बात ये है कि केंद्र सरकार को पहचानना चाहिए कि उसकी जिम्मेदारी, प्राथमिक जिम्मेदारी होती है।

 

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