Monday, May 20, 2024

नेताजी चुनावी मौसम में वेबफाई क्यूँ-खबरीलाल


 जिस भारत ने सम्पूर्ण विश्व को राजधर्म व राजनीति के गुर रहस्यों से अवगत कराते हुए एक सही दिशा निर्देश दिया है।खेद की बात यह है कि आज स्वयं उसी भारत की राजनीति स्वयं दिगभ्रमित व दिशाविहीन हो गई है।सता के सिंघासन पर आसीन होने व सता सुख के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहते है*                                               विश्व के भौगोलिक मानचित्र पर भारत की अपनी एक अलग पहचान है,खासकर राजनीति क्षेत्र में।जिस भारत ने सम्पूर्ण विश्व को राजधर्म व राजनीति के गुर रहस्यों से अवगत कराते हुए एक सही दिशा निर्देश दिया है।खेद की बात यह है कि आज स्वयं भारत की राजनीति स्वयं दिगभ्रमित व दिशाविहीन हो गई है।सता के सिंघासन पर आसीन होने व सता सुख के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहते है।                    आज के राजनीतिक दल व राजनेता अपनी नीजी स्वार्थ के दिनों दिन दलदल में फसती जा रही है।अक्सर आये दिनों अनेकों साक्ष्य आप को देखने को मिल जायेंगे।खास कर चुनाव आते ही नेतागण अपने स्वार्थ सिद्धि व सता के सिंधासन पर आसीन होने के लिए कुछ भी करने से गुरेज नही करते है।राजनीतिक दल व उनके नेता अपने राजधर्म को ताख पर रख कर राजनेता कुछ भी करने को तैयार रहते है।चाहे उनका अपना राजनीति के गुरू या राजनीतिक दल ही क्यूँ नही हो ।उन्हें तिलाजंली ही क्यों नही देना पड़े।आज हम भारतीय राजनीति में दल बदलने नेताओं की चाल व दोहरी चरित्र पर चर्चा करने वाले है।जैसा कि सर्वविदित है कि देश में इस वक्त साधारण लोक चुनाव 24 का चार चरण सम्पूर्ण हो चुका है व पाँचवा चरण सोमवार को होने वाला है।ऐसे में राजनीतिक दलों व खेमें में काफी हलचल है।सतापक्ष - विपक्षी दलों द्वारा जनता जर्नादन के पास जा कर अपने पक्ष में वोट डालने की अपील कर रहे है। क्योंकि भारतीय मतदाता ही  नेताओं का भविष्य का निर्णय करती है। न प्रजातंत्र में भारतीय मतदाता अपने मत द्वारा अपने प्रतिनिधियों को चुन कर देश की सबसे बड़ी पंचायत में भेजती है।             चुनाव आते ही नेतागण अपनी विजय व हार का भविष्य के मद्दे नजर एक दल से दूसरे दल में शामिल हो रहे है।वही दूसरी राजनीतिक दल भी उन्हे अपने दल में शामिल ही करते है बल्कि उन्हे चुनाव में अपनी पार्टी से टिकट देते है,भले ही उनके पार्टी के नेता व कार्यकत्ताओं को टिकट नही मिलें।एक राजनीति दल का दामन छोडकर दुसरे राजनीति खेमें में शामिल होने का इतिहास पुराना है।आए इस एक सरसरी निगाहे डालते है।सन 1960 के दशक में औसतन लगभग 30 प्रतिशत दल बदलू नेता जीत रहे थे।वही जनता जनार्दन नें सन1977 में 31,सन2019 में 85 प्रत‍िशत दल बदलु नेताओं को हराया था।वही जीतने वाले दल बदलुओं नेताओं विजयी होने का पश्न है तो सन1960 के दशक में औसतन लगभग 30 प्रतिशत दल बदलू नेता जीत रहे थे।2019 के चुनावों में दल बदलू नेताओं का सक्सेस रेट15प्रतिशत से कम रहा था,ताजा उदाहरण हमारे गृह राज्य झारखंड के सीता सोरेन की हैं।जो तीन बार की विधायक और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन ने 19 मार्च को जे एम एम(झारखंड मुक्ति मोर्चा)का साथ छोड़, बीजेपी(भारतीय जनता पार्टी)का दामन थाम लिया।इससे पहले झारखंड से ही कांग्रेस की सांसद गीता कोड़ा भाजपा में आईं और मौजूदा सीट(स‍िंंहभूम)से ट‍िकट भी पा गईं।लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अब तक जितने नेताओं ने दल बदला है,उनका नाम का विवरण निम्न प्रकार है

नेता पहले अब बृजेंद्र सिंह पहले भाजपा सांसद थें अब कांग्रेस उम्मीदवार है।राहुल कस्वा पहले भाजपा सांसद थे अब कांग्रेस उम्मीदवार है।रितेश पांडे पहले बसपा सांसद थें,वहअब भाजपा उम्मीदवार है।अफजाल अंसार पहले बसपा सांसद थे,अब वह समाज वादी पार्टी उम्मीदवार है।
बीबी पाटिल जो पहले बीआरएस सांसद थें,अब भाजपा उम्मीदवार है।संगीता आजाद पहले बसपा सांसद थें।अब वह भाजपा उम्मीदवार है।राजनीति दलबदलू नेताओं के बारे राजनीतिक पंडितओं का मानना है कि नेताओं का दल बदलना नई बात नहीं है।ये नेता कई कारणों,व मजबुरियों के कारण जैसे मसलन-टिकट न मिलने,दूसरी पार्टी में जीत की संभावना अधिक दिखने आदि से पार्टी बदलते हैं।हालांकि अब ऐसे नेताओं के लिए बुरी खबर है, क्योंकि समय के साथ इनके जीतने की संभावना कम होती जा रही है।अशोक विश्वविद्यालय के त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा ने लोकसभा आंकड़ों का विश्लेषण किया है,जिससे यह आंकड़ा सामने आया है कि 2019 के चुनावों में दल बदलू नेताओं का सक्सेस रेट(सफलता का दर)15 प्रतिशत से कम रहा था,जबकि 1960 के दशक में औसतन लगभग 30 प्रतिशत दल बदलू नेता जीत रहे थे।
पिछले लोकसभा चुनाव में कुल 8000 से अधिक उम्मीदवार मैदान में थे,इसमें अलग-अलग दलों के 195 दलबदलू उम्मीदवार भी शामिल थे यानी 2019 लोकसभा चुनाव के कुल उम्मीदवारों में 2.4 प्रतिशत दलबदलू थे।दल बदलने वाले 195 नेताओं में से केवल 29 को ही जीत मिली थी,इस तरह पिछली बार का सक्सेस रेट14.9 प्रतिशत था।दो चुनाव पहले दल बदलू नेताओं का सक्सेस रेट करीब-करीब दो गुना था।2004 लोकसभा चुनाव के कुल उम्मीदवारों में दल बदलू उम्मीदवारों का हिस्सा 3.9 प्रतिशत था और सक्सेस रेट 26.2 प्रतिशत था।दल बदलू नेताओं का गोल्डन ईयर दल बदलू राज नेताओं के लिए सबसे अच्छा वर्ष 1977 था।आपातकाल के ठीक बाद हुए इस चुनाव में इंदिरा गांधी से मुकाबले के लिए कई राजनीतिक ताकतों ने हाथ मिलाया था।आपातकाल के दौरान जेल में डाले गए तमाम समाजवादी,जनसंघी और किसान नेताओं ने साथ मिलकर श्री मति इन्दिरा गाँधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था।आप को स्पष्ट कर दूँ कि
सन 1977 के इस लोकसभा चुनाव में उतरे 2439 उम्मीदवारों में से 6.6 प्रतिशत यानी कुल 161 दल बदलू थे।जो पहले किसी राजनीतिक दल के समर्थक या नेता थें,वे इस चुनाव में अपने दल को दुसरे खेमें में शामिल हो गए।इन दल बदलू नेताओं का सक्सेस रेट 68.9 प्रतिशत था,जो अब तक का उच्चतम रहा है।हालॉकि अगले ही चुनाव में सक्सेस का यह रेट तीन गुना से ज्यादा गिर गया।जनता पार्टी व अल्प मत वाली सरकार गिरने के बाद मध्यावली चुनाव कराने पड़े थें। सन 1980 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने सता मेंवापसी की थी।तब 4,629 उम्मीदवारों में से 377 यानी 8.1प्रतिशत दलबदलू थे। जब लोकसभा चुनाव के परिणाम आए तो दल बदलुओं ने ताओं का सक्सेस रेट गिरकर 20.69 प्रतिशत हो गया था।जहाँ तक राजनीतिक दल का प्रशन है कि भाजपा या कांग्रेस किस पार्टी सफल हो रहे हैं दलबदलू?1984 का साल कांग्रेस में आने वाले दल बदलुओं के लिए सबसे अच्छा साल साबित हुआ था।श्रीमति इंदिरा गाँधी हत्या के बाद हुए इस चुनाव में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति की लहर चल रही थी।तब कांग्रेस ने 32 दल बदलू उम्मीदवार मैदान में उतारे थे,जिसमें से 26 को जीत मिली थी यानी कांग्रेस में दल बदलू उम्मीदवारों का सक्सेस रेट81.3प्रतिशत था।1984 में भाजपा ने अपना पहला लोक सभा चुनाव लड़ा था।पार्टी से 62 दलबदलू उम्मीदवार लड़े थे, लेकिन किसी को भी जीत नहीं मिली थी यानी सक्सेस रेट जीरो रहा।लेकिन तब से अब तक आंकड़ों में बड़े बदलाव आ चुके हैं।सन 2019 में भाजपा के कुल उम्मीदवारों में से 5.3 प्रतिशत दल बदलू थे,जिसमें से 56.5 प्रतिशत को जीत मिली थी। कांग्रेस के कुल उम्मीदवारों में 9.5 प्रतिशत दल बदलू थे और जीत सिर्फ 5 प्रतिशत को मिली थी।2014 में भाजपा की टिकट पर लड़ने वाले दलबदलू उम्मीदवारों का सक्सेस रेट 66.7प्रतिशत था।कांग्रेस के लिए यह आंकड़ा 5.3 प्रतिशत था।जहाँ तक इस बार के लोकसभा साधारण चुनाव 24 में दलबदलुओं नेताओं के भविष्य का प्रशन है-वह तो 4 जून को ही पता चलेगा कि भारतीय मतदाता ने किस पार्टी के नेताओं अपना सच्चा हितेषी समझकर अपना बहुमूल्य मत दे "विजयश्री" का शेहरा पहनाया है।इस संदर्भ में अभी कुछ कहना उचित नही है।इसके लिए हमे व आप को इंतजार करना पड़ेगा।तभी तो किसी नें सच ही कहा इंतजार का फल मीठा होता है।फिलहाल आप से यह कहते हुए विदा लेते है-ना ही काहुँ से दोस्ती, ना ही काहुँ से बैर।खबरीलाल तो माँगे खैर॥फिर मिलेंगे,तीरक्षी नजर से, तीखी खबर के संग तब तक के लिए - - -अलविदा।      

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.