Friday, June 28, 2024

अतीत के पन्नों को उजागर करती पुस्तक रजवाड़ों के जांबाज


 राजेन्द्र मोहन शर्मा साहित्य की दुनिया में एक ऐसा नाम है जिसको हर कोई बखूबी से जनता है। साहित्य के क्षेत्र में लम्बे समय से कार्यरत हैं। जिन्हें अनेकों सम्मान जैसे नरपतसिंह सांखल पुरस्कार”, “प्रेमचंद शिखर सम्मान” आदि से नवाजा जा चुका है। अनगिनत पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके राजेंद्र जी की रचनाओं में आखिर क्यों’ काव्य-संग्रह, ‘टेढ़ी बत्तीसी’ व्यंग्य, ‘दीन दयाल’ कहानी-संग्रह, ‘रंजना की व्यंजना’ व्यंग्य-संग्रह, ‘सामयिक सरोकार’ (आलेख) प्रकाशित हो चुकी हैं। चार कृतियाँ प्रकाशनाधीन हैं। प्रयोगवादीभाषा संसार के नए प्रयोगों के वाहक। संप्रति स्वतंत्र लेखन। सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लेखन। सुप्रसिद्ध रचना विनायक त्रयी’ के रचनाकार के रूप में आपको देश भर में विशेष आदर और सम्मान भी प्राप्त किया है। डायमंड बुक्स द्वारा प्रकाशित बुक्स रजवाड़ों के जांबाज” नाम की पुस्तक प्रकाशित हुई है। इसके लेखक है राजेन्द्र मोहन शर्मा।

रजवाड़ों के जांबाज (मुस्लिम सम्राटों की नकेल कसने वाले परवाने) के ऊपर ऐसी सामग्री पाठकों के बिच प्रस्तुत किये जिससे पढ़़ने के बाद उस समय के जाबाजों ने कितने जातन करने के बाद आजादी का जाम हासिल किया है। राजस्थान के कण-कण में अमर बलिदानी की शौर्य गाथा गुंथी होई हैवहाँ के किसी भी मट्टी के ढेले को उठाकर देख लीजिये उसी जगह से आपको उत्सर्ग देने वाला कोई न कोई जांबाज परचम लहराता देखने को मिल जायेगाजिन्होंने अपनी जान की बजी लगाकर माँ भारती की रक्षा की साथ ही उसकी आन बाण शान को भी बढ़ाया। यहाँ के योद्वाओं ने आक्रांताओं को मुंह तोड़ जवाब दिया। इनमें शूरवीर शासक महाराणा प्रताप माला के शिखर हैंशिरोमणि हैं। हल्दीघाटी वीरों की तीर्थ स्थली है तो माँ पन्नाधाय बलिदान की मूर्त है।

इस पुस्तक में आपको केवल प्रेरणा के मणिएं नही मिलेंगे इसमें मिलेगी आपके लहू को खखोलने वाली आग और तूफान का दरिया। आप देखेंगे की किस तरह हमारे रजवाड़े के बहादुर शासकों ने कैसी-कैसी मुश्किलों का सामना किया और आतताई आक्रांताओं को कैसे खदेड़ा उनसे अपने वतन की ही नहीं बल्कि अपनी माँ-बहन और बेटियों की भी रक्षा की। जहाँं कहीं जरूरत पड़ी बलिदानी बेटियों ने अपना सर्वस्व अग्निकुंड को अर्पित कर दिया लेकिन आक्रांताओं को अपनी छाया भी नहीं छूने दी। सिरोही की तलवारें हो या फिर बादल और चेतन जैसे घोड़े हो जब ये सब जांबाज शासको के हाथ में खेलते हैं तो वह कैसे कारनामे कर डालते हैं इसका इतिहास जानना हो तो उन आक्रांताओं से पूछो जो पीठ दिखाकरदुम दबाकर भागे थे। सिरोही की तलवारों ने कैसे उनका लहू निचोड़ कर रख दिया था। राजस्थान की मिट्टी केवल राजपूती शान और प्रतिष्ठा की कहानियाँ ही नहीं सुनती हैहसन खां मेवात जैसे मुस्लिम शासक की देशभक्ति की वह कहानी भी सुनाती है जिससे हमें पता चलता है कि एक मुसलमान शासक होकर भी उसने दुश्मन मुस्लिम शासकों से हाथ नहीं मिलाया। भरतपुर के जाट शासक सूरजमल ने 600 वर्षों तक की गई लूटपाट का हिसाब चुकता किया और दिल्ली को लूट कर बेनकाब कर दिया था। यह पुस्तक आपको उन सब साधारण नौजवानों और बलिदान देने वाली स्त्रियों की कहानी भी सुनेंगी जो अपने जीवन के सुनहरे यौवन में प्रवेश करते-करते ही बलिदान की बलिवेदी पर चढ़ने से नहीं हिचके थे

इस पुस्तक में उन स्त्रियों के ऊपर भी चर्चा भी की गयी है जिनकी इन संघर्षों में महत्वपूर्ण भूमिका रही चाहे वो पन्नाधाय के बलिदान की गाथा हो या बलिदानी रानी हाड़ी की गाथा। इस पुस्तक के द्वारा बखूबी प्रस्तुत किया गया है। आज के समय में इस पुस्तक का महत्व इसलिए भी अधिक हो जाता है क्योंकि आज की पीढियां अपने अतीत से अनजान हैं जबकि वर्तमान को समझने के लिए अपने इतिहास को जानना आवश्यक हो जाता है। जबकि वर्तमान का गहरा संबंध अतीत की जड़ों से संबंधित होता है। इस पुस्तक में आपको इन शूरवीरों महाराणा प्रतापखेतड़ी नरेश अजीत सिंहविवेकानंदअमर सिंह राठौरपृथ्वीराज चौहानमहाराजा सूरजमलबलिदानी रानी हाड़ीपरम प्रतापी वीर दुर्गादास राठौरपन्नाधायमहाराणा कुम्भाडूंगर सिंह भाटीमहाराजा हमीर देवमहानशासक सवाई ईश्वर सिंहसम्राट हेमचन्द्रहसन खां मेवातीआततायी अलाउद्दीन सिरोहीहल्दीघाटी वीरों का तीर्थसिरोह की तलवारें आदि जैसे लोगों को पढने के लिए बेहतरीन सामग्री प्रस्तुत राजेन्द्र मोहन शर्मा पाठकों के बीच परोसने का काम किया है।

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