Saturday, August 31, 2024

कान्ह सिंह नाभा की ‘‘गुरशबद रत्नाकर महान कोश” है साहित्य की अमूल्य निधि उ.प्र. पंजाबी अकादमी ने 30 अगस्त को “कान्ह सिंह नाभा जी का पंजाबी साहित्य में योगदान” विषयक संगोष्ठी का किया आयोजन

 


कान्ह सिंह नाभा की ‘‘गुरशबद रत्नाकर महान कोश” है साहित्य की अमूल्य निधि

.प्र. पंजाबी अकादमी ने 30 अगस्त को कान्ह सिंह नाभा जी का

पंजाबी साहित्य में योगदान” विषयक संगोष्ठी का किया आयोजन

 

लखनऊ 30 अगस्त। उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी की ओर से शुक्रवार 30 अगस्त को कान्ह सिंह नाभा जी का पंजाबी साहित्य में योगदान” विषयक संगोष्ठी का आयोजन इन्दिरा भवन स्थित अकादमी कार्यालय कक्ष संख्या 444 में किया गया। इस संगोष्ठी में वक्ताओं ने बताया कि सरदार बहादुर भाई कान्ह सिंह नाभा द्वारा रचित ‘‘गुरशबद रत्नाकर महान कोशसाहित्य की अमूल्य निधि है। इस अवसर पर कार्यक्रम संयोजक अरविन्द नारायण मिश्र ने संगोष्ठी में आमंत्रित विद्वानों का सम्मानअंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह भेंट कर किया।

संगोष्ठी में आमंत्रित विद्वान दविंदर पाल सिंह बग्गा” ने बताया कि पंथरतनमहान विद्वानसरदार बहादुर भाई कान्ह सिंह नाभा का जीवन विविधताओं से भरपूर था। वह जहाँ महान साहित्यकार थेवहीं वह धार्मिकसामाजिकशैक्षिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी अपनी सेवाएं अर्पित करते थे। यहाँ तक कि अंग्रेज सरकार भी सिखों के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व की समस्याओं के निवारण के सिलसिले में उनकी सलाह लिया करती थी।

इस संगोष्ठी में उपस्थित विद्वान नरेन्द्र सिंह मोंगा ने बताया कि महान पंजाबी विद्वान भाई कान्ह सिंह नाभा अपने समय वर्ष 1861 से 1938 की महान हस्तियों में सर्वोच्च थे। उन्होंने सिख साहित्य का इनसाइक्लोपीडिया कहे जाने वाले ग्रंथ ‘‘महान कोश‘‘ जिसे ‘‘गुरशबद रत्नाकर महान कोश‘‘ भी कहा जाता हैकी रचना की थी। उन्होंने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में गुरुओं से संबंधित ऐतिहासिक गुरुद्वारों का सर्वेक्षण भी कराया था। इस कार्य के लिए उन्होंने अपने प्रतिनिधि सरदार प्रद्युमन सिंह को भेज कर वर्ष 1922 से 1925 तक तीन साल की कड़ी मेहनत के उपरांत हासिल हुए सर्वेक्षण के आधार पर गुरु धाम दीदार पुस्तक प्रकाशित करवायी थी। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1923 में लखनऊ में तीन ऐतिहासिक गुरुद्वारे थे और नाका हिंडोला में एक सिंह सभा गुरुद्वारा मौजूद था।

श्रीमती रनदीप कौर ने भाई कान्ह सिंह नाभा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि दिनाँक 30 अगस्त, 1861 में पटियाला रियासत के सरदार नारायण सिंह और माता हर कौर जी के घर में भाई कान्ह सिंह नाभा का जन्म हुआ था। महज छह साल की उम्र में ही अपने पिताजी की देखरेख में उन्होंने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का पाठ करना सीख लिया था। उन्हें संस्कृतअंग्रेजीफारसी और हिंदी इन सभी विधाओं का ज्ञान था। भाई कान्ह सिंह नाभा के बहुमूल्य योगदान के कारण ही भारत सरकार ने साल 1932 में उन्हें सरदार बहादुर का सम्मान दिया था। भाई कान्ह सिंह नाभा ने अपने विचारधारा से केवल सिख जगत का ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व किया था।

डॉ. रश्मि शील ने संगोष्ठी का सफल संचालन करते हुए कहा कि भाई कान्ह सिंह नाभा जी एक पंजाबी सिख विद्वानलेखकमानवविज्ञानीकोशकार और विश्वकोश्कार थे। उनके द्वारा सिंह सभा आन्दोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गयी थी। पंचरत्न भाई कान्ह सिंह नाभा 19वीं शताब्दी के महान सिख विद्वान और पंजाबी साहित्य को अपना पहला महान कोश देने वाले महान लेखक और बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। अनेक भाषाओं के ज्ञाता, प्रतिष्ठित कविसाहित्यकार और संगीत प्रेमी भी थे। आज भी आपकी इतिहासधर्म और राजनीति के बारे में की गई खोजकारी और टीकाकारी आधुनिक युग के उभरते हुए विद्वानों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। कार्यक्रम में मुख्य रूप से त्रिलोक सिंहअजीत सिंहमनमोहन सिंह पोपलीअंजू सिंहमहेन्द्र प्रताप वर्मा और रवि यादव सहित अन्य विशिष्ट जन उपस्थित रहे।

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.